Wednesday 6 June 2012



हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के ख़ुतबे (प्रवचन)

ख़ुतबा 1

तमाम तारीफ़ें उस अल्लाह के लिए हैं जिस की तारीफ़ की हद तक बोलने वालों की पहुँच नहीं है, जिसकी नेमतों (उपहारों) को गिनने वाले गिन नहीं सकते और कोशिश करने वाले उसका हक़ अदा नहीं कर सकते, न मन उस को पा सकता है, न बुध्दि व विचार की गहराइयाँ उस की हद तक पहुँच सकती हैं । उस की विशेषताओं की कोई हद तय नहीं की जा सकती, उस की विशेषताओं का वर्णन करने के लिए शब्द नहीं हैं । उस को किसी ऐसे समय में नहीं बांधा जा सकता कि जिस को गिना जा सके और न उस के अन्त का कोई समय है । उस ने अपनी शक्ति से इस सृष्टि की रचना की है, अपनी कृपा से हवाओं को चलाया और थरथराती हुई ज़मीन को पहाड़ों की कीलें गाड़ कर रोका ।

दीन की सब से पहली चीज़ परवरदिगार को समझना है और इस समझ की आख़री हद अर्थात पराकाष्ठा परवरदिगार की पुष्टि है और पुष्टि की आख़री हद तौहीद अर्थात एक ईशवर में विश्वास है । और एक ईश्वरवाद की पराकाष्ठा परवरदिगार के प्रति इख़लास अर्थात सच्ची निष्ठा है । और इस इख़लास की आख़री हद यह है कि उस को हर प्रकार के विशेषण से रहित माना जाए क्यूँकि हर विशेषता इस बात की गवाह है कि वह उस से अलग है जिस में वह विशेषता पाई जाती हो और जिस में विशेषता होती है वह इस बात का गवाह है कि वह उस विशेषता से अलग है । अतः जिसने ईशवर को विशेषता से अलग माना उस ने उस का कोई साथी मान लिया और जिस ने उस के लिए कोई साथी मान लिया उस ने उस को दो माना । और जिसने उस को दो माना उस ने उस के लिए हिस्सा बना डाला और जो उस के लिए हिस्सों में विश्वास रखता है वह उस को नहीं समझ पाया और जो उस को नहीं समझ पाया उस ने समझा कि उस की तरफ़ इशारा किया जा सकता है । और जिस ने उस की ओर इशारा किया उस ने उस की सीमाबन्दी कर दी और जिस ने उस को सीमित समझा उस ने उस को कम गिना । और जिस ने यह कहा कि वह किस चीज़ में है तो उस ने उस को किसी चीज़ का हिस्सा समझ लिया । और जिस ने यह कहा कि वह किस चीज़ पर है तो उस ने और जगहों को उस से ख़ाली समझ लिया । वह था और है । वह न होने की स्थिति से होने की स्थिति में नहीं आया है । वह हर चीज़ के साथ है लेकिन वह किसी चीज़ से भौतिक तौर पर जुड़ा हुवा नहीं है । वह हर चीज़ से अलग है लेकिन इस अलगाव का मतलब भौतिक दूरी नहीं है । वह कर्त्ता है किन्तु उस को काम करने के लिए कोई हरकत करने की या किसी साधन की आवश्यकता नहीं है । वह उस समय भी देखने वाला था कि जब इस सर्ष्टि में कोई चीज़ दिखाई देने वाली न थी । उस जैसा कोई दूसरा नहीं है इसलिए कि उस का कोई साथी ही नहीं है कि जिस से उस ने दिल लगाया हो और जिस को खो कर वह परेशान हो जाए । उस ने पहले पहल सर्ष्टि की रचना बिना किसी सोच के और बिना किसी अनुभव के की कि जिस से फ़ायदा उठाने की ज़रूरत पड़ी हो । उस ने सर्ष्टि को बिना किसी हरकत के पैदा किया और बिना किसी जोश व वलवले के कि जिस से वह बेताब हुआ हो । उस ने हर चीज़ को समयबध किया । विपरीत चीज़ों में संतुलन व समन्वय पैदा किया । उस ने हर चीज़ को अलग स्वभाव प्रदान किया और उस स्वभाव को उस चीज़ के अन्दर डाल दिया और उस स्वभाव के अनुसार सूरतें बनाईं । वह चीज़ों को उन के पैदा होने से पहले जानता था । उन की सीमाओं और उन के अन्त को घेरे हुए था तथा उन की ख़सलत व परिस्थितियों के बारे में जानता था ।

फिर उस पाक परवरदिगार ने विस्तृत वातावरण बनाया, उस को हर तरफ़ फैलाया और आसमान से ज़मीन तक बहती हुई हवा पैदा की और उस में ऐसा पानी बहाया जिस की मौजें एक दूसरे को काटती थीं और अथाह गहरे समुन्दर में लहरें एक दूसरे पर सवार थीं । फिर पानी को तेज़ हवा और तीव्र आंधियों की पीठ पर लादा जिस ने हर चीज़ को उखाड़ दिया । फिर हवा को आदेश दिया कि पानी को रोके रखे और उस को नीचे न आने दे तथा उसी सीमा के अन्दर रहे । नीचे हवा दूर दूर तक फैली हुई थी और उस के ऊपर पानी ठाठें मार रहा था । फिर पाक परवरदिगार ने ऐसी हवा पैदा की कि जिस के साथ बारिश नहीं थी जो लगातार और बहुत तेज़ चली और यह हवा अपने केन्द्र से बहुत दूर दूर तक फैल गई । फिर उस ने हवा को आदेश दिया कि बड़े बड़े सागरों को छेड़ दे और दरियाओं में मौजें पैदा कर दे । उस हवा ने पानी को इस तरह मथ दिया कि जिस तरह छाछ को मथा जाता है । और हवा तेज़ी के साथ चली जिस तरह खाली वातावरण में चलती है और पानी के शुरू के हिस्से को आख़िरी हिस्से पर और ठहरे हुए पानी को चलते हुए पानी पर पलटाने लगी यहाँ तक कि मौजें मारता हुआ पानी ऊपर उठता गया और उस की सतह ऊँची हो गई और उस में झाग बनने लगे । अल्लाह ने वह झाग खुली हवा और असीम वातावरण में ऊपर उठा दिए और उन से सात आसमान पैदा किए । नीचे वाले आसमान को रुकी हुई मौज की तरह बनाया और ऊपर वाले आसमान को एक ऊँची और सुक्षित छत की सूरत में इस तरह बनाया कि न उस को खम्बों की ज़रूरत थी और न किसी बन्धन की और वह बिना किसी कील काँटे व रस्सी के अपनी जगह ख़ड़ा हो गया । फिर उस ने आसमानों को चमकते हुए सितारों और दमकते हुए तारों से सजाया । फिर रौशनी देने वाले सूरज और चमकते हुए चांद को आदेश दिया कि वह घूमने वाले आकाश, आराम से तैरती हुई छत और  सितारों भरी चलती हुई आकाशगंगा में चक्कर लगाएँ ।

फिर ऊँचे आसमानों के बीच दरार पैदा कर दी जिस को तरह तरह के फ़रिश्तों से भर दिया जिन में से कुछ ज़मीन पर मस्तक रखे हुए सजदे में पड़े हुए हैं और उठ कर रुकू नहीं करते । कुछ हमेशा रुकू की हालत में झुके हुए हैं और कभी सीधे नहीं खड़े होते । कुछ पक्तियाँ बांधे हुए खड़े हैं और अपनी जगह से नहीं हिलते । और कुछ बिना उकताए व लगातार उस की तसबीह (स्तुति) किए जा रहे हैं , न उन को कभी नींद आती है न उन पर कभी बेहोशी छाती है , न उन की बुद्धी में कोई ख़लल पैदा होता है न उन में कभी सुस्ती पैदा होती है , न उन से भूल चूक से भी कभी कोई ग़लती होती है । उन में से कुछ अल्लाह के संदेशों (वही ए इलाही) के अमानतदार हैं और अल्लाह के संदेशों को उस के रसूलों तक पहुँचाते हैं तथा अल्लाह के आदेशों और उस की मर्ज़ी को लागू करते है । उन में से कुछ उस को बन्दों के संरक्षक हैं तथा कुछ स्वर्ग के द्वारों के रक्षक हैं । जिन में से कुछ ऐसे हैं जिन के पांव प्रथ्वी पर टिके हुए हैं और उन की गर्दनें आसमानों से भी ऊपर उठी हुई हैं । उन के शरीर के अंग पूरे संसार की सीमाओं से भी आगे बढ़े हुए हैं , उन के कन्धे अर्श के पाए उठाने के लिए मुनासिब हैं । उन की आंखें हैबत से झुकी हुईं हैं और पर सिमटे हुए हैं । उन के और सृर्ष्टि में मौजूद दूसरे प्राणियों के बीच इज़्ज़त के नक़ाब और शक्ति के पर्दे पड़े हुए हैं । वह न अपने रब के लिए रूप व आकार की कल्पना करते हैं न उस से कोई विशेषता जोड़ते हैं जो दूसरे बनाने वालों में होती हैं न उस को किसी विशेष जगह में घिरा हुआ समझते हैं न उस को दूसरों जैसा समझते हैं ताकि उस की तरफ़ इशारा करें ।

हज़रत अली (अ.स.) ने हज़रत आदम (अ.स.) के बारे में फरमाया

फिर पाक परवरदिगार ने नर्म , सख़्त , मीठी और नमकीन अर्थात विभिन्न प्रकार की ज़मीन से मिट्टी जमा की और उस मिट्टी को पानी में इतना भिगोया कि वह पाक साफ़ हो गई , फिर उसको अपनी मुहब्बत की तरी से इतना गूँधा कि उस में चिपचिपाहट पैदा हो गई । उस के बाद उस से एक सूरत बनाई जिस में अंग थे , अलग अलग हिस्से थे जो एक दूसरे से जुड़े हुए थे । उस को इतना सुखाया कि वह ठहर गई और उस को इतना सख़्त किया कि वह खनखनाने लगी । फिर एक मुद्दत उस को ऐसे ही रहने दिया । फिर उस में प्राण फूँके तो वह इनसान की सूरत में खड़ी हो गई । वह प्राणी सोचने समझने की सलाहियत रखता था और इस सलाहियत को काम में लाता था । उस के पास ऐसी सोच विचार की शक्ति थी जो उस के अधीन थी । वह अपने हाथ पैरों से सेवा लेता था और उस के शरीर के अंग उस के अधीन थे । उस के पास जो समझ थी वह उस से धर्म और अधर्म में भेद करता था । वह विभिन्न स्वादों , गन्धों , रंगों और चीज़ों में भेद करता था । उस में विपरीत स्वभाव पाए जाते थे । उस में सरकशी भी थी और अच्छी आदतें भी । उस के स्वभाव में गर्मी भी थी और ठण्डक भी , ख़ुश्की भी थी और तरी भी ।

फिर पाक परवरदिगार ने फ़रिश्तों से चाहा कि जो दायित्व उन को सौंपा गया था उस को पूरा करें और जो वादा उन्होंने किया था तथा जो आदेश उन को दिया गया था उस पर अमल करें जो आदम (अ.स.) को सजदा करने , उन का आदर करने और उन के प्रति विनम्रता दिखाने के बारे में था ।

और फिर पाक परवरदिगार ने आदेश दिया कि , ऐ फ़रिश्तो, आदम को सजदा करो । तो इबलीस के अलावा सब सजदे में गिर गए , उस को अभिमान ने घेर लिया और दुर्भाग्य उस पर छा गया । उस ने आग से पैदा होने की वजह से स्वयं को ऊँचा समझा तथा खनखनाती हुई मिट्टी से पैदा होने वाले को अपने से नीचा जाना । तो अल्लाह ने उस को मोहलत दी कि वह उस के पूरे क्रोध का भागीदार बन जाए और मानव जाति की परीक्षा पूरी हो जाए और वह वादा पूरा हो जाए । अतः अल्लाह ने उस से कहा कि उस को एक निश्चित समय तक मोहलत है ।

फिर पाक परवरदिगार ने आदम (अ.स.) को घर में आराम से रखा जहाँ उन को हर तरह का चैन व सुकून था तथा उन को इबलीस की दुश्मनी से भी होशियार कर दिया । लेकिन उन के दुश्मन को गवारा न हुवा कि वह स्वर्ग में नेक लोगों के साथ आराम से रहें और अन्ततः उन को धोका दे ही दिया और उन्होंने विश्वास को शंका और इरादे की मज़बूती को कमज़ोरी के हाथों बेच दिया । उन्होंने प्रसन्ता को भय से बदल लिया और धोका खाने की वजह से पश्चाताप करना पड़ा । फिर अल्लाह पाक ने आदम के लिए प्रायश्चित का द्वार खोल दिया और उन को (रहमत) कृपा के शब्द सिखाए , उन से स्वर्ग में वापिस लाने का वादा किया और उन्हें इस परीक्षागृह और वंश वृद्घि के स्थान पर उतार दिया । अल्लाह पाक ने उन की औलाद से अपने नबी चुने और उन से अपने संदेश (वहीए इलाही) के द्वारा वादा लिया और उन को अपने संदेश को दूसरों तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी सौंपी , किन्तु अधिकतर लोगों ने अल्लाह से किए गए वादे को बदल दिया । वह अल्लाह के अधिकार से बेख़बर हो गए और दूसरों को उस का शरीक बना लिया । शैतानों ने उन को अल्लाह की समझ के रास्ते भटका दिया और उन को उस की आराधना (इबादत) से अलग कर दिया । फिर अल्लाह ने समय समय पर उन में अपने रसूल (दूत) नियुक्त किए और उन के पास लगातार अपने नबी (दूत) भेजे ताकि लोगों ने अल्लाह से जो वादा किया था उस को पूरा कराएँ और उस की भुला दी गई नेमतों (कृपओं) को याद दिलाएँ और उन तक अल्लाह का संदेश पहुँचा कर अपना उत्तरदायित्व पूरा करें । बुद्धि के छुपे हुए ख़ज़ानों को निकाल कर लोगों को अल्लाह की निशानियाँ दिखाएँ । उन को सरों पर उठे हुए ऊँचे ऊँचे आसमान , पैरों के नीचे बिछी हुई ज़मीन , ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी साज़ो सामान , नामो निशान मिटा देने वाली मृत्यु , बूढ़ा कर देने वाली बीमारियों और एक के बाद एक आने वाली परेशानियाँ दिखाएँ । ऐसा कभी नहीं हुआ कि पाक परवरदिगार ने अपने बन्दों को अपनी ओर से भेजे गए दूतों , आसमानी किताबों या उन को पूरी बात बताए बिना छोड़ दिया हो । वह ऐसे दूत थे कि जिनको उन की संख्या की कमी व उन को झुटलाने वालों की अधिकता ने पीछे हटनो पर मजबूर नहीं किया । उन में से कोई पहले आने वाला था जिसने अपने बाद में आने वाले का नाम व निशान बता दिया था । कोई बाद में आया जिस ने अपने से पहले वाले पैग़म्बरों (दूतों) को अपने मानने वालों (उम्मत) से पहचनवाया । समय का चक्र यूँ ही चलता रहा । युग बदल गए । बाप दादाओं की जगह उन की औलादें बस गईं और फिर वह समय आया कि अल्लाह पाक ने हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) को अपना पैग़म्बर (दूत) बनाया ताकि दूतों के भेजने का सिलसिला पूरा हो जाए और अल्लाह का वादा भी पूरा हो जाए । उन के बारे में पिछले नबियों (दूतों) से पहले ही इक़रार लिया जा चुका था और उन के जन्म के लक्षण पिछले नबियों की किताबों में बता दिए गए थे और जो बहुत मशहूर थे और उन का जन्म शुभ और कल्याणकारी था ।

उस समय ज़मीन पर रहने वाले लोगों के धर्म अलग अलग थे , उन की इच्छाएं विभिन्न थीं और उन के रास्ते जुदा थे । उन में से कुछ तो अल्लाह को मख़लूक़ जैसा ही मानते थे , कुछ उस के नामों को बिगाड़ देते थे , कुछ उस को छोड़ कर दूसरों की ओर इशारा करते थे । पाक परवरदिगार ने लोगों का हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) की वजह से सही रास्ते की ओर मार्गदर्शन किया और आप के द्वारा उन को जिहालत (अज्ञान) से छुड़ाया । फिर पाक परदिगार ने हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) को अपने दर्शन के लिए चुना और आप को अपनी विशेष कृपाओं के लिए पसन्द किया और आप को इस दुनिया में रहने से ऊँचा समझा और आप को इस कष्टों से भरी हुई दुनिया से सम्मानपूर्वक उठा लिया ।

हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) तुम्हारे बीच उसी तरह की चीज़ छोड़ गए हैं जो अल्लाह के नबी अपनी उम्मतों (अनुयाइयों) के बीच छोड़ते आए हैं इसलिए कि वह अपनी उम्मतों को बिना रौशन रास्ता और पुख़्ता निशानियाँ दिखाए बिना नहीं छोड़ते थे । पैग़म्बर ने परवरदिगार की किताब तुम्हारे बीच छोड़ी है इस हालत में कि इस किताब में हलाल व हराम , वाजिबात व मुसतहब्बात , नासिख़ व मनसूख़ , अनुमति व संकल्पों , मुख्य व साधारण , शिक्षा व उदाहरण , सयंत व नितान्त व मोहकम व मुतशाबेह को स्पष्ट रूप से बयान कर दिया गया है । मुजमल (संक्षित) आयतों की सविस्तार व्याख्या कर दी गई है । उस की गुत्थियों को सुलझा दिया गया है । उस में कुछ आयतें वह हैं कि जिन को जानना अनिवार्य बना दिया गया है और कुछ वह हैं कि यदि लोग उन से अनजान रहें तो कोई हानि नहीं है । कुछ आदेश ऐसे हैं कि जिन का अनिवार्य होना क़ुरान से सिद्ध है और हदीस से उन के निरस्त होने का पता चलता है । और कुछ आदेश ऐसे हैं कि जिन पर अमल करना हदीस के अनुसार अनिवार्य है लेकिन किताब में उनके त्याग की अनुमति दी गई है । इस किताब में कुछ अनिवार्य कार्य ऐसे हैं जिन का अनिवार्य होना समय व काल से संबधित है और आने वाले समय में उन का अनिवार्य होना निरस्त हो जाता है । क़ुरान में जिन कामों से मना किया गया है वह भी विभिन्न प्रकार के हैं । इन में से कुछ पाप बहुत बड़े हैं जिन के लिए नरक की आग की धमकियाँ दी गई हैं और कुछ छोटे हैं जिन के लिए माफ़ी की उम्मीद पैदा की गई है । कुछ कार्य ऐसे हैं जिन का थोड़ा सा भी क़ाबिले क़बूल है और उन को ज़्यादा से ज़्यादा करने की गुंजाइश रखी गई है ।

इसी खुतबे में हज के बारे में फ़रमाया

अल्लाह ने अपने घर का हज तुम्हारे लिए अनिवार्य किया है जिसे लोगों का क़िबला बनाया गया है जहाँ लोग इस तरह खिंच कर चले आते हैं जैसे प्यासे जानवर पानी की तरफ । वह उस की ओर ऐसे मोह के साथ बढ़ते हैं जैसे कबूतर अपने घोंसलों की तरफ़ । पाक परवरदिगार ने उस को अपनी श्रेष्ठता के सामने लोगों की विवशता और अपनी प्रतिष्ठा का उन के द्वारा स्वीकार किए जाने का निशान बनाया है । उस ने अपनी मख़लूक़ में से सुनने वाले लोग चुन लिए जिन्होंने उस की आवाज़ पर लब्बैक कहा (और कहा कि मैं उपस्थित हूँ , आ गया हूँ) और उस की वाणी की पुष्टि की । वह नबियों की जहग ठहरे और अर्श (ऊँचे आसमान) पर तवाफ़ (परिक्रमा) करने वाले फ़रिशतों का रूप धारण किया । वह अपनी इबादत की तिजारतगाह में लाभ समेटते हैं और उस ओर बढ़ते हैं जहाँ पापों को धोने (मग़फ़रत) का वादा किया गया है । पाक परवरदिगार ने इस घर (काबा) को इसलाम का निशान और शरण चाहने वालों के लिए शरणस्थल (हरम) बनाया है । उस का हज अनिवार्य है और उस का हक़ अदा करना वाजिब है । उस की ओर याञा करना अनिवार्य है । अतः परवरदिगार ने क़ुरानशरीफ़ में फ़रमाया कि अल्लाह का लोगों पर अनिवार्य हक़ यह है कि जिस के पास वहाँ तक पहुँचने का सामर्थ्य हो वह ख़ुदा के घर का हज करे । और जिस ने कुफ़्र किया अर्थात आदेश मानने से इंकार किया तो वह जान ले कि अल्लाह सारे जहान से बेपरवा है ।

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