Tuesday 5 June 2012


हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (15 – 28)


15
हर धोका खाने वाले को सज़ा नहीं दी जा सकती।

16
हर मामला भाग्य के आधीन है यहाँ तक कि कभी – कभी कोशिश करने पर मौत हो जाती है।

17
आप (अ.स.) से हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के इस कथन के बारे में पूछा गया कि अपने बुढ़ापे को ख़िज़ाब के ज़रिए बदल दो। आप (अ.स.) ने जवाब दिया कि यह बात उस समय के लिए थी कि जब मुसलमानों की संख्या कम थी। किन्तु अब इसलाम का दामन फैल चुका है और उस का संदेश हर जगह पहुँच चुका है। अतः अब जिस का दिल चाहे इस बात पर अमल करे।

18
आप (अ.स.) ने उन लोगों के बारे में कि जिन्होंने आप (अ.स.) का साथ नहीं दिया, फ़रमाया, उन लोगों ने हक़ को छोड़ दिया और बातिल की भी मदद नहीं की।

19
जो व्यक्ति अपनी उम्मीदों के पीछे बिना सोचे समझे भागता दौड़ता रहता है वह मौत से ठोकर खाता है।

20
बामुरव्वत लोगों की ग़लतियों को नज़रअन्दाज़ कर दो क्यूँकि यदि उन से कोई ग़लती होती है तो अल्लाह उन का हाथ पकड़ कर ऊपर उठा लेता है।

21
डर का नतीजा नाकामी और शर्म का नतीजा वंचित रह जाना है। फ़ुर्सत की घड़ियां बादलों की तरह जल्दी गुज़र जाती हैं। अतः भलाई करने के लिए मिलने वाले लम्हों को ग़नीमत समझो।

22
हमारा एक हक़ है अगर वह हमको दे दिया गया तो हम ले लेंगे। वर्ना हम ऊँट के पिछले पुट्ठों पर सवार होंगे और रात चाहे कितनी ही लम्बी क्यूँ न हो।

23
जो अपने कर्मों की वजह से पीछे रह जाए, उसे उस का नसब (अर्थात जाति व वंश) आगे नहीं बढ़ा सकता।

24
किसी परेशान व्यक्ति की फ़रियाद सुनना और किसी मुसीबत में फँसे व्यक्ति को मुसीबत से छुड़ाना, बड़े पापों का कुफ़्फारा (अर्थात दण्ड से मुक्ति का साधन) है।

25
ऐ आदम (अ.स.) के बेटे, जब तू देखे कि परवरदिगार तुझ को एक के बाद एक नेमतें दिये चला जा रहा है और तू उस के आदेशों का पालन नहीं कर रहा है, तो उस से डरते रहना।

26
जब कोई व्यक्ति कोई बात अपने दिल में छिपा कर रखना चाहता है तो वह बात बिना सोचे समझे उसके मुँह से निकल जाती है और उसके चेहरे से ज़ाहिर हो जाती है।

27
अपने रोग के साथ निभाओ ताकि वह तुम्हारे साथ निभाए (अर्थात बीमारी में जहाँ तक हो सके बर्दाशत करते रहो)।

28
सबसे अच्छी पारसाई (पवित्रता), पारसाई को छुपाना है।

No comments:

Post a Comment