Wednesday 4 July 2012



हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (157 - 170)


157
अगर तुम देखना चाहो तो तुम को दिखाया जा चुका है, अगर तुम उपदेश हासिल करना चाहो तो तुम को उपदेश दिया जा चुका है और अगर तुम सुनना चाहो तो तुम को सुनाया जा चुका है।

158
अपने भाई पर एहसान करके उस को सुधारने की कोशिश करो और उस से होने वाली हानि को उस पर कृपा करके दूर करो।

159
अगर कोई व्यक्ति ख़ुद को बदनामी वाली जगहों पर ले जाए और फिर अगर कोई दूसरा उस के बारे में बुरा ख़याल करे तो फिर वो उस को बुरा न कहे।

160
जिस को सत्ता मिल जाती है वो पक्षपात करने ही लगता है।

161
जो केवल अपनी राय से काम लेगा, तबाह हो जाएगा और जो दूसरों से मशवरा करेगा उन की अक़लों में शरीक हो जाएगा।

162
जो अपने भेदों को छिपाए रहे गा उस को ख़ुद पर पूरा क़ाबू रहेगा।

163
निर्धनता सबसे बड़ी मौत है।

164
अगर कोई किसी ऐसे व्यक्ति का हक़ अदा करता है जो उस का हक़ अदा न करता हो तो फिर वो उस का ग़ुलाम बन जाता है।

165
किसी की किसी ऐसी आज्ञा का पालन नहीं करना चाहिए जिस से परवरदिगार की अवज्ञा होती हो।

166
अगर कोई व्यक्ति अपना हक़ माँगने के बारे में देर करे तो उस को ग़लत नहीं कहा जा सकता, ग़लत तो वो व्यक्ति है कि जो उस चीज़ की तरफ़ हाथ बढ़ाए जो उस की न हो।

167
स्वाभिमान प्रगति में बाधक होता है।

168
मृत्यु निकट है और दुनिया में दूसरों के साथ रहना सहना बहुत कम है।

169
आँख वाले के लिए सुबह हो चुकी है।

170
पापों को त्याग करना बाद में तौबा तलब करने से आसान है।



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