हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (185 – 198)
185
न मैं ने कभी झूट बोला न मुझे (हज़रत
रसूल द्वारा) झूटी ख़बर दी गई, न मैं ख़ुद कभी गुमराह हुआ और न मैं ने कभी किसी को गुमराह किया।
186
अत्याचार में पहल करने वाला कल
(पश्चाताप) में अपना हाथ अपने दाँतों से काटता होगा।
187
सामान बाँधने
का समय नज़दीक है।
188
जो हक़ की
मुख़ालिफ़त करता है, तबाह हो जाता है।
189
जिसे धैर्य
मुक्ति नहीं दिलाता उसे व्याकुलता बरबाद कर देती है।
190
कितनी अजीब बात है कि क्या (हज़रत रसूल
का) उत्तराधिकारी बनने का मापदण्ड केवल उन का साथी और रिश्तेदार होना ही है?
सैय्यद रज़ी कहते हैं कि यहाँ पर हज़रत
अली (अ.स.) से कविता की चार पक्तियाँ भी नक़ल की गई हैं जिन का अर्थ इस प्रकार है
कि अगर तुम मंत्रणा (शूरा) के द्वारा लोगों के सियाह सफ़ेद के मालिक हो गए तो यह
कैसे हुआ जबकि मशवरा देने के हक़दार लोग उस शूरा में शरीक नहीं थे। और अगर
रिश्तेदारी के आधार पर अपने सामने वाले पर हावी हो गए तो फिर तुम्हारे अलावा दूसरा
व्यक्ति हज़रत रसूल (स.) का ज़्यादा हक़दार और उन का ज़्यादा करीबी रिश्तेदार है।
191
दुनिया में इंसान मृत्यु की ओर से की
जाने वाली तीरों की बारिश का निशाना है और परेशानियाँ उस को हर तरफ़ से घेरे हुए
हैं। यहाँ रह कर घूँट हलक़ में अटकता है और हर लुक़मा गले में फँसता है। यहां
बन्दे को कोई नेमत उस समय तक नहीं मिलती जब तक उस से कोई दूसरी नेमत जुदा नहीं हो
जाती और उस की आयु का एक दिन नहीं आता जब तक कि उस की उम्र से एक दिन कम न हो जाए।
अतः हम लोग मृत्यु के सहायक हैं और हमारी जानें मौत के निशाने पर हैं। हम ऐसी हालत
में अमर होने की आशा किस प्रकार कर सकते हैं। और ये रात व दिन किसी भवन की बुनियादें ऊपर नहीं
उठाते मगर उस को बरबाद करने में और जो कुछ जमा किया है उस को बिखेरने में लगे रहते
हैं।
192
ऐ आदम (अ.स.) के बेटे, तू ने जो कुछ
अपनी ख़ुराक से अधिक कमाया है उस में तू दूसरों का ख़ज़ानची है।
193
दिलों में वासनाएँ पाई जाती हैं। दिल
कभी किसी चीज़ की ओर आकर्षित होते हैं और कभी किसी चीज़ की ओर से पीछे हट जाते
हैं। अतः दिलों से उस समय काम लो कि जब वो किसी चीज़ की तरफ़ आकर्षित हों क्यूँ कि
जब दिल को मजबूर कर के किसी काम पर लगाया जाता है तो उस को कुछ सुझाई नहीं देता।
194
जब मुझे क्रोध आए तो अपने क्रोध को कब उतारूँ? क्या उस समय कि जब मुझ में बदला लेने की ताक़त न हो और मुझ से कहा जाए कि सब्र
कीजिए या उस समय कि जब मुझ में बदला लेने की ताक़त हो और मुझ से कहा जाए कि क्षमा
कर देना अच्छा है।
195
आप का गुज़र एक कूड़े के ढेर की तरफ़ से हुआ जहाँ गन्दगियाँ पड़ी हुई थीं तो
आप ने फ़रमायाः ये वो है जिस के लिए कंजूसी करने वालों ने कंजूसी की। एक दूसरी जगह आया है कि आप ने फ़रमाया कि ये वो है कि जिस की वजह से तुम लोग
कल एक दूसरे से मुक़ाबला किया करते थे।
196
तुम्हारा वो माल जो तुम्हारे हाथ से चला गया किन्तु तुम को उपदेश दे गया बेकार
नहीं गया।
197
दिल भी शरीर की तरह थक जाते हैं। अतः दिलों को सुकून देने को लिए समझदारी की
बातें तलाश करो।
198
जब आप (अ.स.) ने ख़ारजियों का यह कथन सुना कि ‘ला हुकमा इल्ला लिल्लाह’ अर्थात आदेश केवल अल्लाह के लिए है, तो आप ने फ़रमाया कि यह बात तो सही है
किन्तु इस से जो अर्थ निकाला जाता है वो ग़लत है।
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