Tuesday 17 July 2012



हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (241-254)


241
वो दिन जब अत्याचार सहने वाला व्यक्ति अत्याचार करने वाले व्यक्ति पर क़ाबू हासिल करेगा, उस दिन से ज़्यादा सख़्त होगा जिस दिन अत्याचार करने वाले को अत्याचार सहने वाले पर शक्ति प्राप्त थी।

242
अल्लाह से कुछ तो डरो, चाहे थोड़ा ही क्यूँ न हो और अपने और अल्लाह के बीच पर्दा रखो चाहे वो पर्दा बारीक सा ही क्यूँ न हो।

243
जब एक सवाल के बहुत से उत्तर हों तो सही बात छिप जाया करती है।

244
(इंसान को मिलने वाली) हर नेमत में अल्लाह का एक हक़ है जो व्यक्ति उस हक़ को अदा कर देता है, अल्लाह उस पर नेमतों में बढ़ौतरी कर देता है और जो व्यक्ति वो हक़ अदा करने में कोताही करता है तो ख़ुदा उन नेमतों को छिन जाने के ख़तरे में डाल देता है।

245
जब इंसान का ख़ुद पर क़ाबू बढ़ जाता है तो वासनाएँ घट जाती हैं।

246
नेमतों के नष्ट होने से डरते रहो क्यूँकि हर भाग जाने वाला पलटता नहीं है।

247
मेहरबानी रिश्तेदारी से भी अधिक निकटता का कारण होती है।

248
जो तुम्हारे बारे में अच्छा विचार रखे तो तुम उस अच्छे विचार को सच्चा साबित करो।

249
उत्तम कर्म वो है जिस को करने के लिए तुम्हें अपने मन को मारना पड़े।

250
मैं ने पाक परवरदिगार को पहचाना इरादों के टूट जाने से और बन्द रास्तों के खुल जाने से।

251
इस लोक की कड़वाहट परलोक की मिठास है और इस लोक की मिठास परलोक की कड़वाहट है।

252
अल्लाह ने ईमान को वाजिब क़रार दिया इंसान को शिर्क की गन्दगी से पाक करने के लिए, नमाज़ को अनिवार्य किया अहंकार से बचाने के लिए, ज़कात को रोज़ी बढ़ने का कारण बनाया, रोज़े का मक़सद अल्लाह के बन्दों की निःस्वार्थता (इख़लास) की परीक्षा है, हज दीन को सशक्त करने के लिए है, जिहाद इसलाम की सरबुलन्दी के लिए है, नेक काम का आदेश देना लोगों के सुधार के लिए है, बुराई से रोकने का उद्देश्य बेवक़ूफ़ों की रोक थाम है, रिश्तेदारों के साथ अच्छा व्यवहार करने का उद्देश्य मित्रों और सहयोगियों की गिनती बढ़ाना है। क़िसास (बदला) इस लिए रखा गया है ताकि ख़ून न बहे, धामिर्क सीमाओं की स्थापना इस लिए की गयी है ता कि जिन कामों से रोका गया है उन को अच्छी तरह बताया जा सके।

मदिरापान करने से इस लिए रोका गया है ताकि बुद्धि की रक्षा की जा सके, चोरी से दूरी पवित्रता की रक्षा के लिए है, गुदा मैथुन का त्याग वंश बढ़ाने के लिए है। परस्त्री गमन से मना करने का उद्देश्य नसब की रक्षा है। गवाही अधिकारों के नकारने के मुक़ाबले में प्रमाण उपलब्ध कराने के लिए है। झूठ से दूरी सत्य की प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए है। सलाम करना भय से सुरक्षा के लिए है। इमामत उम्मत की व्यवस्था करने के लिए है और आज्ञाकारिता इमामत की प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए है।

253
अगर किसी अत्याचारी से क़सम लेना हो तो उस से इस तरह हलफ़ उठवाओ कि वो अल्लाह की शक्ति व सामर्थ्य से मुक्त है। क्यूँकि जब वो इस तरह झूटी क़सम खाएगा तो जल्दी सज़ा पाएगा। और जब इस तरह क़सम खाए कि क़सम अल्लाह की कि जिस के सिवा कोई माबूद नहीं है तो उस की जल्दी पकड़ न होगी क्यूँकि उस ने अल्लाह को उस की वहदत व यकताई के साथ याद किया।

254
आप (अ.स.) ने फ़रमायाः ऐ आदम (अ.स.) के बेटे, अपने माल का व्यवस्थापक तू ख़ुद बन और उस के साथ वो कर जो तू चाहता है कि तेरे बाद किया जाए।

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