Tuesday 17 July 2012



हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (255 - 269)


255
क्रोध एक प्रकार की दीवानगी है क्यूँकि क्रोध करने वाला बाद में लज्जित अवश्य होता है और अगर वो लज्जित नहीं होता तो इस का अर्थ है कि उस की दीवानगी पक्की हो चुकी है।

256
शारीरिक स्वास्थ्य ईर्ष्या की कमी से प्राप्त होता है।

257
ऐ कुमैल, अपने घर वालों से कहो कि दिन के समय अच्छी आदतें हासिल करने के लिए निकलें और रात के समय सो जाने वालों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए चल खड़े हों। उस की क़सम जिस की सुनने की शक्ति तमाम आवाज़ों से बड़ी है कोई व्यक्ति किसी का दिल ख़ुश नहीं करता मगर यह कि अल्लाह उस के लिए उस ख़ुशी से एक नेमत पैदा करता है और जब उस व्यक्ति पर कोई विपत्ति आती है तो वो नेमत उस की ओर (उस विपत्ति को दूर करने के लिए) उसी तेज़ी से बढ़ती है जिस तेज़ी से ढाल पर पानी बहता है और (वो नेमत उस विपत्ति को उस व्यक्ति से) उसी तरह दूर भगा देती है जैसे अजनबी उँटों को हंका दिया जाता है।

258
जब निर्धन हो जाओ तो दान के द्वारा अल्लाह के साथ व्यापार करो।

259
ग़द्दारों के साथ वफ़ादारी करना अल्लाह के नज़दीक ग़द्दारी है और ग़द्दारों के साथ ग़द्दारी करना अल्लाह के नज़दीक वफ़ादारी है।

260
कितने ही लोग ऐसे हैं जिन्हें नेमतें दे कर आहिस्ता आहिस्ता दण्ड का पात्र बनाया जाता है। कितने ही लोग ऐसे हैं जो अल्लाह की पर्दापोशी से धोका खाए हुए हैं और वो अपने बारे में अच्छे शब्द सुन कर भ्रम में पड़ गए हैं। और अल्लाह की ओर से मोहलत दिए जाने से बड़ी कोई परीक्षा नहीं है।

इस अध्याय में हम अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स.) के वो कठिन वचन संकलित करेंगे जिन की व्याख्या ज़रूरी है।
1
जब वो समय आएगा तो दीन का यअसूब अपनी जगह स्थापित हो जाएगा और लोग सिमट कर उस की ओर बढ़ें गे जिस प्रकार ख़रीफ़ के मौसम के बादल जमा हो जाते हैं।

(यअसूब मधुमक्खियों के राजा को कहते हैं और यअसूबुद्दीन का अर्थ बारहवें इमाम हज़रत मेहदी अ.स. हैं।)

2
वह कुशल वक्ता है।

हज़रत अली (अ.स.) ने यह बात अपने एक विशेष साथी सअसआ बिन सोहान के बारे में फ़रमाई जिन को मुग़ीरा बिन शोअबा ने मुआविया के आदेश पर देश निकाला दे दिया था और जिन का इसी हालत में 60 हिजरी में देहान्त हुवा था।

3
दुश्मनी का नतीजा क़ुहम होता है।

सैय्यद रज़ी कहते हैं कि क़ुहम से मुराद विनाश है और इसी शब्द से क़हमतुल आराब की कहावत बनी है। और यह वह हालत होती है कि जब अरब के बनबासी अकाल से इस प्रकार ग्रसित हो जाते हैं कि उन के पशु केवल हड्डियों का ढाँचा हो कर रह जाते हैं। और इस का एक अर्थ और है कि जब अरब के लोग वन जीवन की कठिनाइयों व अकाल के कारण शहरों की ओर कूच करने पर मजबूर हो जाएँ। इस को क़हमत कहा जाता है।

4
जब लड़कियाँ नस्सुल हक़ाइक़ को पहुँच जाएं तो दधियाली रिश्तेदार अधिक अधिकार रखते हैं।

सैय्यद रज़ी कहते हैं कि नस्सुल हक़ाइक़ की जगह नस्सुल हक़ाक़ भी मिलता है। नस्स चीज़ों की पराकाष्ठा और उन की चरम सीमा को कहते हैं। पशु की वह सबसे अधिक रफ़तार जिस से वह दौड़ सकता है नस्स कहलाती है। हज़रत अली (अ.स.) ने नस्सुल हक़ाक़ से व्यस्कता की सीमा तक पहुँचना मुराद लिया है जो बचपन की आख़िरी हद और वह ज़माना होता है कि कमसिन कमसिनी की सीमा से निकल कर बड़ों की पंक्ति में प्रवेश करता है। हज़रत अली (अ.स.) यह कहना चाहते हैं कि जब लड़कियाँ उस सीमा तक पहुँच जाएं तो दधियाली रिश्तेदार जब कि वह महरम (अर्थात जिन से विवाह न हो सके) भी हों जैसे भाई और चाचा, और वो उन का रिश्ता कहीं करना चाहें तो वो उन की माँ से अधिक रिश्ते के चयन का अधिकार रखते हैं।

5
ईमान एक लुमज़ा की सूरत में दिल में प्रकट होता है और जैसे जैसे ईमान बढ़ता जाता है वो लुमज़ा भी बढ़ता जाता है।

सैय्यद रज़ी कहते हैं कि लुमज़ा श्वेत बिन्दु या उस के समान सफ़ेद चिन्ह को कहते हैं और उसी से फ़रसुलमज़ उस घोड़े को कहा जाता है जिस के नीचे के होंटों पर कुछ सफ़ेदी हो।

6
जो व्यक्ति दैनुज़ ज़ुनून वसूल करे तो जितने साल उस पर गुज़रे होंगे उन की ज़कात देना ज़रूरी है।

सैय्यद रज़ी कहते हैं कि दैनुज़ ज़ुनून वह क़र्ज़ा होता है कि ऋण देने वाला यह फ़ैसला न कर सके की वो उसे वसूल होगा या उसे कभी उम्मीद पैदा हो और कभी नाउम्मीदी।

7
जब आप (अ.स.) ने लड़ने के लिए सेना भेजी तो उस समय फ़रमायाः

जहाँ तक हो सके स्त्रियों से दूर रहो।

सैय्यद रज़ी फ़रमाते हैं कि इस का अर्थ है कि स्त्रियों की याद में खो न जाओ और उन से दिल लगाने और शारीरिक सम्पर्क स्थापित करने से परहेज़ करो।

8
वो उस यासिरे फ़ालिज की तरह है जो जुए के तीरों का पासा फेंक कर पहले ही दाँव में कामयाबी की उम्मीदवार होता है।

सैय्यद रज़ी कहते हैं कि यासिरून वह लोग हैं कि जो नहर की हुई (काटी गई) ऊँटनी पर जुए के तीरों का पासा फेंकते हैं और फ़ालिज का अर्थ जीतने वाला है।

9
जब युद्ध में शिद्दत आ जाती थी तो हम रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की शरण में जाते थे और हम में से कोई भी उन से ज़्यादा दुश्मन से क़रीब नहीं होता था।

सैय्यद रज़ी कहते हैं कि इस का मतलब यह है कि जब दुश्मन का ख़तरा बढ़ जाता था और जंग सख़ती से काटने लगती थी तो मुसलमान यह सहारा ढूँढने लगते थे कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ख़ुद जंग करें तो अल्लाह तआला आप(स) की वजह से उन की मदद फ़रमाए और आप (स) की मौजूदगी के कारण ख़तरे से सुरक्षित रहें।

यह अध्याय समाप्त हुआ। अब हम पुनः पहले अध्याय की ओर लौटते हैं।

261
जब अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स.) को यह ख़बर मिली कि मुआविया के साथियों ने शहर अमबार पर धावा बोल दिया है तो आप (अ.स.) अकेले पैदल चल खड़े हुए, यहाँ तक कि नुख़ैला तक पहुँच गए। इतने में लोग भी आप (अ.स.) तक पहुँच गए और कहने लगे कि या अमीरुल मोमिनीन हम दुश्मन से निपट लें गे आप (अ.स.) के तशरीफ़ ले जाने की ज़रूरत नहीं है। इस पर आप (अ.स.) ने फ़रमाया तुम अपने से तो मेरा बचाव कर नहीं सकते, दूसरों से क्या बचाव करोगे। मुझ से पहले प्रजा अपने हाकिमों की शिकायत किया करती थी मगर मैं आज अपनी प्रजा की ज़ियादतियों की शिकायत करता हूँ जैसे मैं प्रजा हूँ और वो हाकिम और जैसे मैं आधीन हूँ और वो अधिकारी।

सैय्यद रज़ी कहते हैं कि हज़रत अली(अ.स.) ने इस मौक़े पर एक लम्बा भाषण दिया जिस का चुना हुआ हिस्सा हम ने आप के ख़ुतबों के अध्याय में शामिल किया है। फिर आप ने यह बातें फ़रमाईं जिस को सुन कर आप के साथियों में से दो व्यक्ति उठ खड़े हो गए और उन में से एक ने कहा कि या अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) मुझे अपने और अपने भाई के अलावा किसी और पर क़ाबू नहीं है तो आप (अ.स.) हमें आदेश दें ताकि हम उस आदेश को पूरा करें। जिस पर हज़रत (अ.स.) ने फ़रमाया की मैं जो चाहता हूँ वो तुम दो आदमियों से कहाँ हो सकता है।

262
बयान किया जाता है कि हारिस इबने हूत हज़रत अली (अ.स.) की सेवा में हाज़िर हुआ और कहा कि क्या आप के ख़याल में मुझ को यह गुमान भी हो सकता है कि असहाबे जमल गुमराह थे?

इस पर आप (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ हारिस तुम ने नीचे की तरफ़ देखा और ऊपर की तरफ़ निगाह नहीं डाली। तुम सत्य को नहीं जानते ताकि सत्य वालों को पहचानो और असत्य को नहीं पहचानते ताकि असत्य की राह पर चलने वालों को जानो। इस पर हारिस ने कहा कि वो सअद इबने मालिक और अबदुल्ला इबने उमर के साथ भूमिगत हो जाएगा।

इस पर हज़रत अली(अ.स.) ने फ़रमाया कि सअद इबने मालिक और अबदुल्ला इबने उमर ने न सत्य का साथ दिया और न असत्य को बेनक़ाब किया।

263
बादशाह का दरबारी शेर पर सवारी करने वाले की तरह होता है, लोग उस के पद से ईर्ष्या करते हैं लेकिन वो स्वयं जानता है कि उस की क्या हालत है।

264
दूसरों के यतीमों के साथ भलाई करो ताकि तुम्हारे यतीमों के साथ मेहरबानी की जाए।

265
यदि बुद्घिमान व्यक्तियों की बात सही होती है तो वो वा बन जाती है और अगर ग़लत हो तो बीमारी बन जाती है।

266
एक व्यक्ति ने आप (अ.स.) से सवाल किया कि ईमान की परिभाषा क्या है। आप (अ.स.) ने फ़रमाया कि कल आना ताकि मैं इस का उत्तर लोगों के सामने दूँ कि अगर तुम भूल जाओ तो दूसरे याद रखें, क्यूँकि वाणि एक भड़के हुए शिकार की तरह होती है जो किसी के हाथ में आ जाती है और किसी से छूट जाती है।

267
ऐ आदम (अ.स.) के बेटे, उस रोज़ की चिन्ता का भार जो अभी आया ही नहीं है तू अपने आज के दिन पर न डाल जो आ चुका है क्यूँकि अगर तेरी आयु का एक दिन भी बाक़ी होगा तो अल्लाह तेरी रोज़ी तुझ तक पहुँचाए गा।

268
दोस्त के साथ दोस्ती एक हद तक करो क्यूँकि हो सकता है कि कल वो तुम्हारा दुश्मन बन जाए। और दुश्मन के साथ दुश्मनी एक हद तक करो क्यूँकि हो सकता है कि कल वो तुम्हारा दोस्त बन जाए।

269
दुनिया में काम करने वाले दो प्रकार के होते हैं। एक वो जो केवल दुनिया के लिए ही प्रयत्न करते हैं और ये लोक उन को परलोक की याद से रोके रहता है। इन लोगों को अपने बच्चों की निर्धनता का भय लगा रहता है किन्तु ये लोग स्वयं अपनी निर्धनता की कोई परवाह नहीं करते। ये लोग दूसरों के लाभ के लिए ही अपनी पूरी आयु व्यतीत कर देते हैं। किन्तु एक वो व्यक्ति भी है जो दुनिया में रह कर परलोक के लिए कर्म करता है तो उसे भाग दौड़ किए बिना दुनिया भी मिल जाती है और इस तरह वो दोनों हिस्सों को समेट लेता है और दोनों घरों का मालिक बन जाता है। वो अल्लाह के सामने प्रतिष्ठित होता है और उस की ऐसी कोई प्रार्थना नहीं होती जो अल्लाह स्वीकार न करता हो।

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