Tuesday 17 July 2012



हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (270 - 283)


270
कहा जाता है कि हज़रत उमर के सामने ख़ानाए काबा के आभूषणों के बारे में बात हुई तो कुछ लोगों ने उन से कहा कि अगर आप उन आभूषणों को ले लें और उन को मुसलमानों की सेना पर व्यय करें तो इस से ज़्यादा पुण्य मिलेगा। ख़ानाए काबा को इन आभूषणों की क्या आवश्यकता है। हज़रत उमर ने इस बारे में हज़रत अली(अ.स.) से पूछा तो आप ने फ़रमायाः

जिस समय क़ुरान नबीए करीम (स.) पर उतरा तो उस समय चार प्रकार के माल थे। एक मुसलमानों का व्यक्तिगत माल था,  उसे आपने उन के वारिसों में बाँटने का आदेश दिया। दूसरा माल, माले ग़नीमत था, उसे उस के पात्र व्यक्तियों के बीच वितरित किया। तीसरा माल, माले ख़ुम्स था। अल्लाह ने इस माल के विशेष ख़र्च निर्धारित कर दिए हैं। चौथे ज़कात व सदक़ात थे, उन्हें अल्लाह ने वहाँ व्यय करने का आदेश दिया जहाँ उन का उपयोग है। ख़ानाए काबा के ये आभूष उस समय भी मौजूद थे लेकिन अल्लाह ने उन को उन के हाल पर ही रहने दिया और ऐसा भूले से तो नहीं हुआ और न उन का अस्तित्व गुप्त था। अतः आप भी उन्हें वहीं रहने दीजिए जहाँ अल्लाह और उस के रसूल (स.) ने उन को रखा है।

यह सुन कर हज़रत उमर ने कहा कि अगर आप (अ.स.) न होते तो हम रुसवा हो जाते और उन आभूषणों को उसी हालत पर रहने दिया।

271
कहा जाता है कि एक बार हज़रत अली (अ.स.) के सामने दो पुरुषों को लाया गया जिन्होंने सरकारी ख़ज़ाने (बैतुल माल) से चोरी की थी। उन में से एक तो बैतुल माल का ही ग़ुलाम था और दूसरा किसी और व्यक्ति का ग़ुलाम था। आप ने फ़रमायाः

यह ग़ुलाम जो बैतुल माल का है उस को दण्ड नहीं दिया जा सकता क्यूँकि अल्लाह का माल, अल्लाह के माल ने ही खाया है। लेकिन दूसरे व्यक्ती को दण्ड दिया जाए गा। अतः उस का हाथ काट दिया गया।

272
आप (अ.स.) ने फ़रमायाः अगर मेरे पैर इन फिसलनों से बच कर जम गए तो मैं बहुत सी चीज़ों में परिवर्तन कर दूँगा। (अर्थात अगर मौजूदा परेशानियाँ दूर हो गईं तो दीन में शुरू की गईं बहुत सी नई बातों को समाप्त कर दूँगा।)

273
इस बात को पूरे विश्वास से जाने रहो कि अल्लाह सुबहानहु ने किसी बन्दे का रिज़्क उस से अधिक क़रार नहीं दिया है जितना तक़दीरे इलाही (भाग्य) में उस के लिए निर्धारित कर दिया गया है, चाहे उस व्यक्ति के उपाय कितने ही बलवान, उस की कोशिशें कितनी ही अधिक और उस की तरकीबें कितनी ही सशक्त क्यूँ न हों। और किसी बन्दे की कमज़ोरी और उस की कम कोशिश की वजह से उस के भाग्य में जो जीविका निर्धारित कर दी गई है उस तक पहुँचने में कोई रुकावट नहीं होती। इस वास्तविकता को समझने वाला और उस पर अमल करने वाला लाभ की राहतों में सबसे आगे होता है। और जो इस सच्चाई को छोड़ देता है और उस में शक करता है वो सब से अधिक हानि उठाने वाला है। बहुत से वो लोग जिन को नेमतें प्रदान की गई हैं इन नेमतों की वजह से आहिस्ता आहिस्ता प्रताणना के निकट किए जा रहे हैं और बहुत से लोगों पर दरिद्रता के परदे में अल्लाह की ओर से दया व कृपा की जा रही है। अतः ऐ सुनने वालो अल्लाह का धन्यवाद अधिक करो और जल्दबाज़ी कम करो और जो तुम्हारी रोज़ी की हद है उस पर ठहरे रहो।

274
अपने ज्ञान को अज्ञान और अपने विश्वास को शंका न बनाओ और जब जान लिया तो कर्म करो और जब विश्वास पैदा हो गया है तो आगे बढ़ो।

275
लोभ मृत्यु की ओर ले जाता है और कभी अपने चँगुल से नहीं छोड़ता है। लोभ एक ऐसा ज़ामिन है जो कभी अपना वादा पूरा नहीं करता। कभी कभी ऐसा होता है कि पानी पीने से पहले ही पीने वाले के गले में अटक जाता है। किसी पसंदीदा चीज़ का महत्व जितना अधिक होता है उस को खो देने का दुख उतना ही अधिक होता है। आकाँक्षाएं मन की आँखों को अन्धा कर देती हैं। जो चीज़ भाग्य में होती है वो बिना कोशिश किए मिल जाती है।

276
ऐ अल्लाह, मैं तेरी शरण चाहता हूँ इस बात से कि मेरा बाहरी रूप लोगों की नज़र में अच्छा हो किन्तु जो कुछ मेरे दिल में छिपा हो वो तेरी दृष्टि में बुरा हो और मैं लोगों के सामने अच्छा बनने के लिए अपने दिल के अन्दर छिपी उन बातों को छिपाऊँ जिन को तू अच्छी तरह जानता है। इस तरह लोगों के सामने तो अच्छा बना रहूँ लेकिन तेरे सामने अपना कुफ्ऱ पेश करता रहूँ जिस के नतीजे में मैं तेरे बन्दों के तो क़रीब हो जाऊँ मगर तेरी प्रसन्नता से दूर होता चला जाऊँ।

277
एक अवसर पर आप (अ.स.) ने सौगन्ध खा कर कहा, उस की सौगन्ध जिस की कृपा से हम ने अंधेरी रात का बाक़ी हिस्सा भी काट दिया, जिस के बाद उजाला दिन निकले गा, और ऐसा वैसा नहीं हुआ।

278
वो थोड़ा कर्म जो पाबन्दी के साथ किया जाए उस अधिक कर्म से बहुत लाभकारी है जिस से दिल उकता जाए।

279
अगर मुसतहब काम (अर्थात ऐसा काम जिस के करने से सवाब तो मिलता हो मगर न करने से गुनाह न हो) वाजिब काम के रास्ते में रुकावट हो तो उस को छोड़ दो।

280
जो यात्रा की दूरी को ध्यान में रखता है ख़ुद को उस के लिए तैयार रखता है।

281
आँखों का देखना वास्तव में देखना नहीं है क्यूँकि कभी कभी आँखें चीज़ों को वैसा दिखा देती हैं जैसी वो होती नहीं हैं। किन्तु बुद्घि उस व्यक्ति को, जो उस से उपदेश चाहे, कभी धोका नहीं देती।

282
तुम्हारे और उपदेश के बीच लापरवाहियों को पर्दा पड़ा हुआ है।

283
तुम्हारे जाहिल ज़्यादा दौलत पा जाते हैं और तुम्हारे विद्वान भविष्य की आशाओं में ग्रस्त रखे जाते हैं।

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