Tuesday 17 July 2012

हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (298 - 320)

298
जो लड़ाई झगड़े में हद से गुज़र जाए वो पापी है, जो उस में कमी करे उस पर सितम किया जाता है और जो लड़ता झगड़ता रहता है उस के लिए अल्लाह से डरना कठिन हो जाता है।

299
एक ऐसा पाप जिस के बाद दो रकअत नमाज़ अदा करने और अल्लाह से शान्ति व कुशलता की दुआ करने की मोहलत मिल जाए मुझे परेशान नहीं करता।

300
अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स.) से पूछा गया कि परवरदिगार अपने असंख्य बन्दों का हिसाब किताब कैसे करेगा तो आप (अ.स.) ने फ़रमायाः

जिस तरह इतनी अधिक संख्या के बावजूद उन को रोज़ी पहुँचाता है।

आप (अ.स.) से फिर सवाल किया गया कि परवरदिगार किस तरह हिसाब लेगा जब कि लोग उस को देखेंगे भी नहीं।

आप (अ.स.) ने फ़रमायाः जिस तरह उन को रोज़ी देता है और वो उस को देखते नहीं हैं।

301
तुम्हारा दूत तुम्हारी बुद्धि का परिचायक है और जो चीज़ तुम्हारी ओर से तुम्हारी बात दूसरों तक भलि भाँति पहुँचाती है वो तुम्हारा पत्र है।

302
हर वो व्यक्ति जो परेशानियों में घिरा हो दुआ का मोहताज है। किन्तु जो व्यक्ति परेशानियों में न घिरा हुआ हो वो भी दुआ का उतना ही मोहताज है क्यूँकि परेशानियाँ उस को घेरने की प्रतीक्षा में हैं।

303
लोग दुनिया की औलाद हैं और किसी व्यक्ति की अपनी माँ से प्रेम करने पर भर्त्सना नहीं की जा सकती।

304
लाचार व्यक्ति अल्लाह की ओर से भेजा हुआ दूत है। जिस ने उस को मना किया उस ने अल्लाह को मना किया और जिस ने उस को कुछ दिया उस ने अल्लाह को दिया।

305
जो लोग ग़ैरतदार होते हैं वो कभी परस्त्री के साथ शारीरिक संबन्ध स्थापित नहीं करते।

306
जीवन की जो अवधि लिख दी गई है वो व्यक्ति की सुरक्षा के लिए काफ़ी है।

307
औलाद के मरने पर इंसान को नींद आ जाती है किन्तु माल के छिन जाने पर नहीं आती।

308
बापों के बीच दोस्ती, औलादों के बीच रिश्तेदारी का कारण बनती है। और दोस्ती को रिश्तेदारी की उतनी आवश्यकता नहीं है जितनी रिश्तेदारी को दोस्ती की।

309
इस बात से डरो कि ईमान वाले लोग तुम्हारे बारे में बुरा गुमान करें क्यूँकि अल्लाह ने हक़ को उन की ज़बान पर क़रार दिया है।

310
किसी बन्दे का ईमान उस समय तक सच्चा नहीं हो सकता जब तक वो अपने हाथ में मौजूद चीज़ से अधिक अल्लाह के हाथ में मौजूद चीज़ पर विश्वास न रखता हो।

311
जब अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स.) बसरा पहुँचे तो आप (अ.स.) ने अनस बिन मालिक से कहा कि वो तलहा व ज़ुबैर के पास जाएँ और उन को हज़रत रसूल (स.) की हदीस याद दिलाएँ। उन्होंने उन दोनों को हज़रत अली (अ.स.) का वो पैग़ाम नहीं पहुँचाया और जब लौट कर आए तो कहा कि हज़रत रसूल (स.) की वो हदीस मुझ को याद नहीं। जिस पर हज़रत अली (अ.स.) ने फ़रमायाः

अगर तुम मुझ से झूट बोल रहे हो तो अल्लाह तुम को ऐसे चमकदार दाग़ में मुबतला कर दे कि जिस को पगड़ी भी न छिपा सके।

(इस घटना के बाद अनस बिन मालिक के चेहरे पर सफ़ेद दाग़ हो गए थे और वो अपना चेहरा हमेशा नक़ाब से ढक कर रखते थे।)

312
दिल कभी एक ओर आकर्षित हो जाते हैं और कभी उचाट हो जाते हैं। अतः जब वो किसी ओर आकर्षित हो जाएँ तो उस समय उन को मुसतहब्बात (जिस के करने से सवाब हो और जिस के न करने से गुनाह न हो) को अंजाम देने के लिए प्रोत्साहित करो। और जब दिल उचाट हो तो केवल वाजिब की अदायगी पर ही बस करो।

313
क़ुरान में तुम से पहले होने वाली घटनाओं की ख़बरें और तुम्हारे बाद घटित होने वाली घटनाओं की सूचनाएं हैं और तुम्हारे बीच की परिस्थितियों के लिए आदेश हैं।

314
पत्थर जिधर से आए उधर ही पलटा दो क्यूँकि बुराई को बुराई के बिना नहीं रोका जा सकता।

315
अपने मुंशी उबैदुल्लाह इबने राफ़े से फ़रमायाः

अपनी दवात के अन्दर मोटा कपड़ा डाला करो और क़लम की नोक लम्बी रखा करो, पंक्तियों के बीच दूरी ज़्यादा छोड़ा करो, अक्षरों को मिला कर लिखा करो। यह बात पत्र के आकर्षण के लिए मुनासिब है।

316
आप (अ.स.) ने फ़रमायाः मैं ईमान वालों का इमाम हूँ और धन दुष्ट लोगों का मार्ग दर्शक है।

317
एक यहूदी ने आप (अ.स.) से कहा कि अभी तुम लोगों ने अपने नबी (स.) को दफ़न भी नहीं किया था कि आपस में मतभेद शुरु कर दिया। इस पर आप (अ.स.) ने फ़रमायाः हम ने उन (स.) के बारे में मतभेद नहीं किया बल्कि उन (स.) के उत्तराधिकार के बारे में मतभेद हुआ। मगर तुम तो वो हो कि अभी दरयाए नील से निकल कर तुम्हारे पैर सूखे भी नहीं थे कि अपने नबी (स.) से कहने लगे कि हमारे लिए एक ऐसा ख़ुदा बना दीजिए जैसा उन का है जिस पर हज़रत मूसा (अ.स.) ने फ़रमाया, बेशक तुम एक जाहिल क़ौम हो।

318
आप (अ.स.) से पूछा गया कि आप किस वजह से अपने शत्रुओं के मुक़ाबले में सफ़ल होते रहे हैं तो आप (अ.स.) ने फ़रमाया कि मैं जिस व्यक्ति का भी मुक़ाबला करता था वो अपने विरुद्ध मेरी सहायता करता था।

सैय्यद रज़ी फ़रमाते हैं कि इस का मतलब यह है कि आप (अ.स.) की धाक दिलों पर छा जाती थी।

319
आप (अ.स.) ने अपने पुत्र हज़रत मौहम्मद बिन हनफ़िया से फ़रमायाः ऐ मेरे बेटे, मैं तुम्हारे लिए निर्धनता से डरता हूँ। अतः निर्धनता के बारे में अल्लाह की सहायता मांगो क्यूँकि निर्धनता धर्म में त्रुटि पैदा कर देती है और बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है और शत्रु पैदा कर देती है।

320
किसी ने आप (अ.स.) से कुछ सवाल किया तो फ़रमायाः

समझने के लिए पूछो, उलझने के लिए मत पूछो। क्यूँकि वो अज्ञानी जो जानना चाहता है ज्ञानी के समान है, और वो ज्ञानी जो उलझना चाहता है अज्ञानी के समान है।

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