हज़रत अली (अलैहिस्सलाम)
के कथन (335 - 350)
335
हर व्यक्ति के माल में दो हिस्सेदार होते हैं – एक वारिस और दूसरे दुर्घटनाएँ।
336
जिस से माँगा जाए वो उस समय तक स्वतंत्र है जब तक कि वो वादा न कर ले।
337
बिना स्वंय कर्म किए दूसरों को अच्छे काम की ओर बुलाने वाला ऐसा है जैसे बिना
कमान के तीर चलाने वाला।
338
ज्ञान दो तरह का है – एक वो जो आत्मा में रच बस जाए और एक वो जो केवल सुन लिया
गया हो। और सुना हुआ ज्ञान लाभ नहीं देता जब तक कि वो मन में रच बस न जाए।
339
सही मशवरा और हुकूमत एक दूसरे के साथ होते हैं। अगर सही मशवरा होता है तो
हुकूमत बाक़ी रहती है और अगर ये नहीं होता तो वो भी नहीं होती।
340
स्वच्छ चरित्र ग़रीबी का और शुक्र करना अमीरी का ज़ेवर है।
341
अत्याचारी के लिए न्याय का दिन उस दिन से अधिक कठिन होगा जब अत्याचारी ने
अत्याचार किए थे।
342
सबसे बड़ी स्मृद्धि यह है कि जो दूसरों के हाथ में है उस की आस न रखी जाए।
343
जो कुछ कहा गया है वो सुरक्षित है। दिलों के भेद जाँचे जाने वाले हैं। हर व्यक्ति
अपने कर्मों के हाथ गिरवी है। लोगों के शरीर कमज़ोर और उन की बुद्धियाँ भ्रष्ट हैं
सिवाए उन के कि जिन को अल्लाह बचाए रखे, उन में से पूछने वाला उलझना चाहता है और
जवाब देने वाला बिना ज्ञान के जवाब देता है। उन में जो सही राय रखते हैं उन को
ख़ुशी व नाराज़गी पलटा देती है। उन में से जिस की बुद्घि परिपक्व होती है उस के
दिल पर एक निगाह असर करती है और एक वाक्य उस के अन्दर क्रान्ति पैदा कर देता है।
344
आप (अ.स.) ने फ़रमायाः ऐ लोगो, अल्लाह से डरते रहो क्यूँकि कितने लोग हैं जो
आशाएँ रखते हैं और उन को प्राप्त नहीं कर पाते, कितने ही ऐसे लोग हैं जो घर बनाते
हैं लेकिन उनको उन में रहना नसीब नहीं होता और बहुत से ऐसे माल जमा करने वाले हैं
जो जल्दी ही अपना माल छोड़ कर चले जाते हैं, ऐसा माल जो ग़लत तरीक़े से जमा किया गया हो
या किसी का हक़ दबा कर प्राप्त किया गया हो और उस माल को हराम के तौर पर पाया हो और
उस माल की वजह से पाप का बोझ उठाया हो। तो वो लोग उस माल का वबाल ले कर पलटे और
अपने परवरदिगार के सामने दुखी हालत में जा पहुँचे। उन लोगों ने लोक व परलोक दोनों
में घाटा उठाया, यही तो खुल्लम खुल्ला घाटा है।
345
पापों तक पहुँच न होना भी चरित्र स्वच्छ रहने का एक साधन है।
346
तुम्हारी प्रतिष्ठा सुरक्षित है मगर माँगने के लिए हाथ फैलाना उस प्रतिष्ठा को
बहा देता है। अतः इस बात को देख लो कि तुम किस के सामने अपना मान गँवा रहे हो।
347
किसी की उस के अधिकार से अधिक सराहना करना चापलूसी है और उस की उस के अधिकार
से कम सराहना करना कमज़ोरी या ईर्ष्या है।
348
सब से भारी पाप वो है जिस को करने वाला उसे हलका समझे।
349
जो व्यक्ति अपने पापों की तरफ़ देखेगा वो दूसरों के पापों की तरफ़ निगाह नहीं
करेगा। जो अल्लाह की दी हुई रोज़ी से संतुष्ट रहेगा वो जो उस के हाथ से चला गया उस
से दुखी नहीं होगा। जो अत्याचार की तलवार खींचता है उस का ख़ून भी उसी तलवार से
बहता है। जो अपने कार्य ज़बरदसती करना चाहता है वो ख़ुद को बरबाद कर लेता है। जो उठती हुई मौजों में फाँद
पड़ता है वो डूब जाता है। जो बदनामी की जगहों पर जाएगा वो बदनाम होगा। जो अधिक बोलेगा
वो अधिक ग़लतियाँ करेगा। जो इंसान ज़्यादा ग़लतियाँ करता है उस की शर्म कम हो जाए
गी। और जिस की शर्म कम हो जाएगी उस के चरित्र की स्वच्छता उस से भी कम हो जाएगी और
जिस के चरित्र की स्वच्छता कम होगी उस का दिल मुर्दा हो जाएगा। और जिस का दिल
मुर्दा हो जाएगा वो नरक में जाएगा। और जो दूसरों के दोष देख कर नाक भौं सुकेड़े और
वो चीज़ ख़ुद के लिए सही समझे वो मूर्ख है
और उस की मूर्खता में कोई शक नहीं है। संतोष ऐसी पूँजी है जो कभी समाप्त नहीं
होती। जो मृत्यु को बहुत याद करता है वो थोड़ी सी दुनिया मिल जाने पर भी ख़ुश हो
जाता है। जो व्यक्ति समझता है कि उस की कथनी उस की करनी का हिस्सा है वो सार्थक
बातों के अलावा बात नहीं करता।
350
अत्याचारी की तीन पहचानें हैं। वो अपने से बड़े पर उस की अवज्ञा करके अत्याचार
करता है, वो अपने से छोटे पर उस को तंग करके और उस को तकलीफ़ पहुँचा कर अत्याचार
करता है और वो अत्याचारियों से सहयोग और उन की सहायता करता है।
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