Wednesday 18 July 2012


हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (351 - 365)


351
जब सख़ती अपनी अन्तिम सीमा पर पहुँच जाती है तो हालात सुधर जाते हैं और जब आपदाओं की ज़ंजीरें तंग हो जाती हैं तो सुख स्मृद्धि प्राप्त होती है।

352
आप (अ.स.) ने अपने एक साथी से फ़रमायाः

अपने बीवी बच्चों की हद से ज़्यादा चिन्ता न करो, क्यूँकि अगर वो अल्लाह के मित्र होंगे तो अल्लाह अपने मित्रों को बरबाद न होने देगा। और अगर वो अल्लाह के शत्रु होंगे तो तुम्हें अल्लाह के शत्रुओं से क्या काम।

353
सबसे बड़ा दोष यह है कि उस दोष को बुरा कहो जिस के समान ख़ुद तुम्हारे अन्दर मौजूद हो।

354
एक व्यक्ति ने आप (अ.स.) के सामने दूसरे व्यक्ति को उस का पुत्र पैदा होने की ख़बर सुन कर इस तरह मुबारकबाद दी कि, शहसवार मुबारक हो। जिस पर आप (अ.स.) ने फ़रमाया, यह न कहो, बल्कि यह कहो कि तुम प्रदान करने वाले ख़ुदा के आभारी हुए, ये दी हुई नेमत तुम को मुबारक हो, ये उन्नति की अन्तिम सीमा तक पहुँचे और इस की नेकी और सौभाग्य तुम्हें भी नसीब हो।

355
आप (अ.स.) के अधिकारियों में से किसी ने एक ऊँचा भवन निर्माण किया तो आप (अ.स.) ने फ़रमायाः

चाँदी के सिक्कों ने सर निकाला है, बेशक यह भवन तुम्हारी स्मृद्धि का द्योतक है।

356
आप (अ.स.) से पूछा गया कि यदि किसी व्यक्ति को घर के अन्दर बन्द कर दिया जाए तो उस की रोज़ी कहाँ से आएगी। तो आप (अ.स.) ने फ़रमायाः जिधर से उस की मौत आएगी।

357
आप (अ.स.) ने कुछ लोगों से उन के किसी मरने वाले पर शोक प्रकट करते हुए फ़रमायाः

यह काम न तुम से आरम्भ हुआ है और न तुम पर अन्त होगा। तुम्हारा यह दोस्त यात्रा में रहा करता था। अब भी उस को एक यात्रा में ही समझो। अगर वो तुम तक पहुँच गया तो बहुत ठीक वरना तुम स्वंय उस तक पहुँच जाओगे।

358
ऐ लोगो, चाहिए कि अल्लाह तुम को नेमत व आसाइश के मौक़े पर भी उसी तरह भयभीत देखे जिस तरह की तुम को दण्ड से भयभीत देखता है। बेशक जिसे स्मृद्धि नसीब हो और वो उसे दण्ड की ओर बढ़ने का कारण न समझे तो उसने अपने आप को एक ख़तरनाक चीज़ से सुरक्षित समझ लिया। और जो निर्धन हो जाए और इस निर्धनता को परीक्षा न समझे उस ने उस पुण्य को नष्ट कर दिया जिस के मिलने की आशा की जाती है।

359
आप (अ.स.) ने फ़रमायाः ऐ लोभ में गिरफ़्तार लोगो, अपनी ये हरकतें बन्द कर दो, क्यूँकि दुनिया पर टूटने वालों को डरना चाहिए कि काल की घटनाएँ अपने दाँत पीस रही हैं। ऐ लोगो अपने सुधार का दायित्व ख़ुद अपने ऊपर ले लो और अपने अन्तःकरण को उन चीज़ों से लौटा लो जिन का वो आदी हो गया है।

360
आप (अ.स.) ने फ़रमाया कि अगर कोई व्यक्ति कोई बात कह रहा है और अगर उस में कोई अच्छाई का पहलू निकल सकता है तो उस में बुराई का पहलू मत निकालो।

361
जब अल्लाह से कोई दुआ माँगो तो पहले हज़रत रसूल सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम पर दरूद भेजो उस के बाद दुआ माँगो। क्यूँकि पाक परवरदिगार इस से ऊँचा है कि उस से दो दुआएं माँगी जाएँ और वो एक को पूरा करदे और एक को रोक ले।

362
जिस को अपनी इज़्ज़त प्यारी है उसे चाहिए कि लड़ाई झगड़े से दूर रहे।

363
शक्ति प्राप्त हो जाने से पहले किसी काम में जल्दबाज़ी करना और मौक़ा आने पर चूक जाना दोनों मूर्खता है।

364
जो हुआ न हो उस के बारे में सवाल मत करो क्यूँकि जो हो चुका है वो ही तुम को व्यस्त रखने के लिए काफ़ी है।

365
चिंतन एक चमकदार दर्पण है और उपदेश एक चेतावनी देने वाला शुभ चिन्तक है और तुम्हारे अन्तःकरण के सुधार के लिए इतना ही काफ़ी है कि जो चीज़ दूसरों के लिए नापसन्द करते हो उस से दूर रहो।

No comments:

Post a Comment