हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (366 - 380)
366
ज्ञान कर्म से संबधित है अतः जो जानता है वो कर्म भी करता है। और ज्ञान कर्म
को पुकारता है अगर वो उत्तर देता है तो ठीक वर्ना वो भी उस से विदा हो जाता है।
367
ऐ लोगो, दुनिया की दौलत सूखा सड़ा भूसा है जो संक्रामक रोग पैदा करता है। अतः यहां
अपना सामान आराम से खोल कर लेट जाने से बेहतर इस चरागाह से दूर रहना और इस से दिल
न लगाना है। इस से केवल (अपनी न्यूनतम) आवश्यकताओं के बराबर लेना, धन दौलत इकट्ठा
करने से ज़्यादा अच्छा है। जिस ने इस दुनिया से अधिक मात्रा में ले लिया उस के लिए
दरिद्रता तय कर दी गई है। और जिस ने अपनी आवश्यकताएँ ख़त्म कर दीं और जिस को
दुनिया की आवश्कता न रही उस को राहत मिली। जिस को इस दुनिया की सजधज अच्छी लगती है
अन्त में यही चमक दमक उस को अन्धा कर देती है। और जो दुनिया पर फ़िदा हो जाता है
दुनिया उस के अन्दर ऐसे शोक भर देती है जो उस के दिल की गहराइयों में उथल पुथल
पैदा कर देते हैं इस तरह कि कभी कोई फ़िक्र उस को घेरे रहती है और कभी कोई अंदेशा
उस को परेशान किए रहता है। वो इसी हालत में होता है कि उस का गला घोंटा जाने लगता
है और वो जंगल बियाबान में डाल दिया जाता है इस आलम में कि उस के दिल की दोनों
रगें टूट चुकी होती हैं और अल्लाह के लिए उस का फ़ना करना और उस के भाई बन्दों के
लिए उसे क़ब्र में उतारना आसान हो जाता है।
मोमिन दुनिया को उपदेश लेने की दृष्टि से देखता है और उस से उतना ही भोजन
ग्रहण करता है जितनी उस को ज़रूरत होती है और वो दुनिया की हर बात को नापसन्दी के
तौर पर व दुश्मनी की निगाह से देखता है। अगर किसी के बारे में यह कहा जाता है कि
वो मालदार हो गया है तो ये भी सुनने में आता है कि वो निर्धन होगया। अगर उस के
होने पर खुशी छा जाती है तो उस के मरने पर शोक भी होता है। यह दुनिया की हालत है।
हालाँकि अभी वो दिन नहीं आया है कि जब पूरी मायूसी छा जाएगी।
368
पाक परवरदिगार ने अपनी आज्ञा पालन में पुण्य और अपनी अवज्ञा में दण्ड इस लिए
रखा है ताकि अपने बन्दों को नरक के दण्ड से दूर करे और उन को स्वर्ग की ओर ले जाए।
369
आप (अ.स.) ने फ़रमाया कि लोगों पर एक ऐसा दौर आएगा कि जब क़ुरान के केवल चिन्ह
और इसलाम के नाम के अतिरिक्त कुछ बाक़ी नहीं बचेगा। उस दौर में मस्जिदें सज्जा की
दृष्टि से आबाद और लोगों के मार्गदर्शन की दृष्टि से वीरान होंगी। उन के बनाने
वाले और उन में ठहरने वाले ज़मीन के लोगों में सबसे बुरे होंगे। यह लोग उपद्रवों
के स्रोत और पापों का केन्द्र होंगे। जो इन फ़ितनों से मुँह मोड़े गा, उन्हें
उन्हीं फ़ितनों की तरफ़ पलटाएँगे और जो क़दम पीछे हटाएगा, उन्हें धकेल कर उन की
तरफ़ ले जाएँगे। अल्लाहताला फ़रमाता है कि मुझे अपनी क़सम कि मैं उन लोगों पर ऐसा
फ़ितना (उपद्रव) भेजूँगा कि जिस में सहनशील व गंभीर को आश्चर्यचकित छोड़ूँगा। अतः
वह ऐसा ही करेगा। हम अल्लाह से लापरवाही की ठोकरों से क्षमा के इच्छुक हैं।
370
कहा जाता है कि ऐसा कम ही होता था कि आप (अ.स.) मिम्बर पर ख़ुतबा देने के लिए
तशरीफ ले जाते हों और यह वाक्य न फ़रमाते हों।
ऐ लोगो, अल्लाह से डरो क्यूँकि कोई व्यक्ति बेकार पैदा नहीं किया गया कि वो
खेल कूद में पड़ जाए और न उस को बेलगाम छोड़ दिया गया है कि बेहूदा बातें करने लगे
और यह दुनिया जो उस के सामने खुद को सजा संवार कर पेश करती है उस परलोक का बदल
नहीं हो सकती कि जिस को उस की निगाह में बुरी सूरत में पेश किया गया है। वो धोका
खाया हुवा व्यक्ति जिस ने अपने उच्च साहस के बल बूते पर दुनिया हासिल करने में
सफ़लता प्राप्त की उस व्यक्ति के समान नहीं हो सकता जिस ने परलोक के लिए थोड़ा
बहुत जमा कर लिया हो।
371
कोई प्रतिष्ठा इसलाम से बड़ी नहीं है, कोई सम्मान तक़वा (मन व कर्म की
पवित्रता) से बड़ा नहीं है, कोई दुर्ग संयम से अधिक दृढ़ नहीं है, कोई सिफ़ारिश
करने वाला तौबा से बढ़ कर सफ़ल नहीं है, कोई कोष संतोष से ज़्यादा बेपरवा कर देने
वाला नहीं है, जो व्यक्ति केवल अपनी ज़रूरत भर रोज़ी लेता है तो निर्धनता को दूर
करने वाली इस से बढ़ कर कोई बात नहीं है, और जो व्यक्ति अपनी रोज़ की रोटी पर बस
करता है वो सुख व स्मृद्धि पाता है और संतोष हासिल करता है। दुनिया की मुहब्बत
पीड़ा की कुंजी और क्षोभ की सवारी है। लालच, अहंकार और ईर्ष्या पापों में बेधड़क
फाँद पड़ने के प्रेरक हैं। दुश्चरित्र तमाम दोषों पर हावी होता है।
372
आप (अ.स.) ने जाबिर इबने अब्दुल्लाह अंसारी से फ़रमायाः
चार प्रकार के लोगों से दीन व दुनिया की स्थापना है। विद्वान जो अपने ज्ञान को
काम में लाता है। अज्ञानी जो ज्ञान हासिल करने में शर्म महसूस न करता हो। दानी जो
दान करने में कंजूसी न करता हो। ग़रीब व्यक्ति जो लोक के बदले परलोक न बेचता हो।
अतः अगर ज्ञानी अपने ज्ञान को बरबाद करेगा तो अज्ञानी उस के सीखने में शर्म करेगा
और अगर मालदार व्यक्ति परोपकार व उपकार करने में कंजूसी करेगा तो ग़रीब व्यक्ति
अपना परलोक लोक के बदले बेच डाले गा।
ऐ जाबिर, जिस पर अल्लाह की नेमतें अधिक होंगीं लोगों की आवश्यकताएँ भी उसी के
दामन से अधिक संबधित होंगीं। अतः जो व्यक्ति उन नेमतों के द्वारा अल्लाह के लिए
काम करेगा अल्लाह उन नेमतों को स्थाई बना देगा और जो व्यक्ति इन कर्तव्यों को पूरा
करने के लिए उठ खड़ा नहीं होगा वो उन्हें बरबादी के ख़तरे में डाल देगा।
373
इबने जरीरे तबरी ने अपने इतिहास में अबदुररहमान इबने अबी लैला फ़क़ीह से
रिवायत की है। अबदुररहमान, इबने अशअस के साथ मिल कर हज्जाज से लड़ने के लिए निकले
थे। वह लोगों को हज्जाज के खिलाफ़ युद्ध के लिए तैयार करने के लिए अपने भाषणों में
कहा करते थे कि जब हम शाम देश के लोगों के विरुद्घ लड़ने के लिए बढ़े तो हज़रत
अली (अ.स.) को कहते सुनाः
ऐ मोमिनीन, अगर कोई व्यक्ति देखे कि अत्याचार किया जा रहा है और बुराई की ओर
निमंत्रण दिया जा रहा है और उस ने उस को मन से बुरा समझा तो वो दण्ड से सुरक्षित
हो गया और पाप करने से बच गया। और जिस व्यक्ति ने उस को ज़बान से बुरा कहा उसे
इनाम मिला और वो उस से बेहतर है जो उस काम को केवल दिल से बुरा समझता है। और जो
व्यक्ति तलवार हाथ में ले कर उस बुराई के विरुद्ध खड़ा हो जाए ताकि अल्लाह का बोल
बाला हो और अत्याचारियों की बात गिर जाए तो यही वो व्यक्ति है जिस ने मार्गदर्शन को
पा लिया और सीधे रास्ते पर चला और उस के दिल में विश्वास ने उजाला फैला दिया।
374
लोगों में से एक वो है जो बुराई को हाथ, ज़बान और दिल से बुरा समझता है। अतः
उस ने अच्छी आदतों को पूरे तौर पर हासिल कर लिया। और वो व्यक्ति जो ज़बान और दिल
से उस को बुरा समझता है किन्तु अपने हाथ से उस को नहीं मिटाता तो उस ने अच्छी
आदतों में से दो से सम्पर्क रखा और एक आदत को नष्ट कर दिया। वो व्यक्ति जो बुराई
को दिल से बुरा समझता है और उसे मिटाने के लिए हाथ और ज़बान किसी से काम नहीं
लेता, उस ने तीन आदतों में से दो अच्छी आदतों को नष्ट कर दिया और केवल एक से
सम्बंधित रहा। एक वो है जो ज़बान से न हाथ से और न दिल से बुराई की रोक थाम करता
है वो जीवित लोगों में चलती फिरती हुई लाश है।
तुम को मालूम होना चाहिए कि समस्त नेक काम और अल्लाह की राह में जिहाद, अम्र
बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर (अच्छे काम का आदेश देने और बुरे काम से रोकने) के
मुक़ाबले में ऐसे हैं जैसे गहरे दरिया में थोड़ा से थूक। नेकी का आदेश देने और
बुराई से रोकने से न मृत्यु समय से पहले आ जाती है और न इंसान की रोज़ी में कमी
होती है। और इस सब से बेहतर बात वो है जो किसी अत्याचारी शासक के सामने कही जाए।
375
अबू हुजैफ़ा से रिवायत है कि उन्होंने अमीरुल मोमिनीन अली (अ.स.) को फ़रमाते
हुए सुनाः पहली श्रेणी का युद्ध जिस से तुम पराजित हो जाओगे, हाथ का जिहाद है, फिर
ज़बान का और फिर दिल का। जिस ने दिल से भलाई को अच्छा और बुराई को बुरा न समझा उस
को उलट पलट कर दिया जाएगा इस तरह कि ऊपर का हिस्सा नीचे और नीचे का हिस्सा ऊपर कर
दिया जाए गा।
376
सत्य भारी होता है किन्तु भला लगता है। असत्य हलका होता है किन्तु संक्रमण
पैदा करने वाला होता है।
377
इस उम्मत के सबसे अच्छे व्यक्ति के बारे में भी अल्लाह के दण्ड के बारे में
बिल्कुल निश्चिन्त मत हो जाओ क्यूँकि पाक परवरदिगार फ़रमाता है कि घाटा उठाने वाले
लोग ही अल्लाह के दण्ड से निश्चिन्त हो बैठते हैं। और इस उम्मत के सब से बुरे
व्यक्ति के बारे में भी अल्लाह की रहमत की ओर से निराश न हो जाओ क्यूँकि अल्लाह की
रहमत की ओर से काफ़िरों के अलावा कोई निराश नहीं होता।
378
कंजूसी तमाम बुराईयों का संग्रह है और एक ऐसी नकेल है जिस से हर बुराई की तरफ़
खिंच कर जाया जा सकता है।
379
रोज़ी दो तरह की होती है। एक रोज़ी वो होती है जिस को तुम ढूँढते हो और एक
रोज़ी वो होती है जो तुम्हें ढूँढती है और अगर तुम उस तक नहीं पहुँचते हो तो वो
तुम तक पहुँच कर रहेगी। अतः अपने एक दिन की चिन्ता पर साल भर की चिन्ताएँ मत लादो
क्यूँकि जो रोज़ की रोज़ी है वो तुम्हारे लिए काफ़ी है। अगर तुम्हारी आयु का कोई
साल शेष है तो अल्लाह ने जो रोज़ी तुम्हारे लिए निश्चित कर रखी है वो हर नए दिन
तुम को देगा। और अगर तुम्हारी आयु का कोई साल शेष नहीं है तो फिर उस चीज़ कि
चिन्ता क्यूँ करो जो तुम्हारे लिए नहीं है। और जो रोज़ी तुम्हारे लिए निश्चित कर
दी गई है तो कोई भी माँगने वाला तुम्हारी रोज़ी की ओर तुम से आगे नहीं बढ़ सकता और
जो चीज़ तुम्हारे लिए निश्चित कर दी गई है तुम्हें उस के मिलने में कभी देर न
होगी।
380
आप (अ.स.) ने फ़रमाया कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो सुबह को होते हैं और शाम आते
आते नहीं रहते। कुछ लोग ऐसे होते हैं कि रात के पहले हिस्से में उन से ईर्ष्या की
जाती है और रात के आख़िरी हिस्से में उन पर रोने वालियों का कोहराम बरपा होता है।
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