Saturday 21 July 2012

हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (381 - 400)

381
वाणी जब तक तुम ने उसे कहा नहीं तुम्हारी बन्धक है और जब तुम ने कह दिया तो तुम उस के बन्धक हो। अतः अपनी ज़बान की उसी तरह रक्षा करो जिस तरह अपने सोने चाँदी की करते हो क्यूँकि बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जो किसी बड़ी नेमत को छीन लेती हैं और विपत्ति को बुलावा देती हैं।

382
जो नहीं जानते उसे न कहो बल्कि जो जानते हो वो भी सब का सब मत कहो क्यूँकि अल्लाह ने तुम्हारे अंगों पर कुछ कर्तव्य लागू किए हैं जिन के द्वारा क़यामत के दिन वो तुम्हारे ऊपर हुज्जत लाए गा।

383
इस बात से डरो कि अल्लाह तुम को अपनी अवज्ञा के समय देखे और अपनी आज्ञा के पालन के समय अनुपस्थित पाए और तुम को घाटा उठाने वालों में गिना जाए। अतः यदि ख़ुद को शक्तिशालि दिखाना हो तो अपनी शक्ति को पाक परवरदिगार के आज्ञा पालन में लगाओ और यदि कमज़ोर होना हो तो अल्लाह की अवहेलना करने में कमज़ोरी दिखाओ।

384
दुनिया की अस्थिरता को देखते हुए उस की ओर झुकना मूर्खता है और पुण्य प्राप्त होने का विश्वास होने के बावजूद नेक काम करने में कोताही का अर्थ घाटा उठाना है और परखे बिना हर एक पर भरोसा कर लेना कमज़ोरी की निशानी है।

385
अल्लाह के नज़दीक दुनिया की तुच्छता के लिए यही काफ़ी है कि अगर अल्लाह के आदेशों की अवहेलना होती है तो इसी दुनिया में और अगर अल्लाह की ओर से नेमतें प्राप्त होती हैं तो इसी दुनिया को छोड़ने पर।

386
कोई व्यक्ति अगर किसी चीज़ को हासिल करने की कोशिश करता है तो उस को या उस के कुछ हिस्से को पा लेता है।

387
आप (अ.स.) ने फ़रमायाः वो भलाई, भलाई नहीं जिस के बाद नरक की आग हो और वो बुराई, बुराई नहीं जिस के बाद स्वर्ग मिले। स्वर्ग के सामने हर नेमत छोटी है और नरक के सामने हर मुसीबत आराम है।

388
जान लो कि अगर खाने के लिए कुछ न हो तो यह एक मुसीबत है। इस से भी बड़ी मुसीबत शरीर की बीमारी है और शारीरिक बीमारियों मे सब से बड़ी बीमारी दिल की बीमारी है। और जान लो कि नेमतों में सब से बड़ी नेमत धन की अधिकता है और धन की अधिकता से भी अच्छा शरीर का निरोग होना है और शरीर के निरोग होने से अच्छा दिल का पाप से सुरक्षित होना है।

389
जिसे उस का कर्म पीछे हटा देता है उसे उस का कुल आगे नहीं बढ़ा सकता।
एक दूसरी रिवायत में इस तरह आया है।
जिस के अपने अन्दर कोई ख़ूबी न हो उसे उस के पूर्वजों की महानता से कोई लाभ नहीं होता।

390
मोमिन का समय तीन भागों में विभाजित होता है। एक भाग में तो वो अपने परवरदिगार से बातें करता है, एक भाग में वो अपनी जीविका की व्यवस्था करता है और एक भाग में वो हलाल और पवित्र स्वादों का स्वाद लेने के लिए अपने आप को स्वतंत्र छोड़ देता है। और बुद्धिमान को शोभा नहीं देता कि वो तीन चीज़ों के अलावा किसी और चीज़ के पीछे भागे। अपने रोज़गार का प्रबन्ध करना या परलोक की ओर क़दम बढ़ाने के लिए काम करना और या ऐसी चीज़ो से स्वाद लेना जो हराम न हों।

391
दुनिया से दिल न लगओ, अल्लाह तुम को दुनिया की ख़राबियाँ दिखा देगा और बेपरवा न रहो क्यूँकि तुम्हारी ओर से बेपरवा नहीं रहा जाए गा।

392
आप (अ.स.) ने फ़रमायाः बात करो ताकि पहचाने जाओ क्यूँकि इंसान अपनी ज़ुबान के नीचे छिपा है।

393
दुनिया से तुम को जो हासिल हो ले लो और जो चीज़ तुम से मुँह मोड़ ले तुम भी उस से मुँह मोड़ लो। और अगर ऐसा नहीं कर सकते तो फिर दुनिया माँगने व हासिल करने में संतुलन स्थापित करो।

394
बहुत से वाक्य आक्रमण से अधिक प्रभाव रखते हैं।

395
जिस चीज़ पर संतोष कर लिया जाए वही काफ़ी है।

396
मौत आ जाए किन्तु अपमान न हो। कम मिले किन्तु दूसरे के द्वारा न मिले। जिसे कोई चीज़ आसानी से नहीं मिलती वो चीज़ उसे कोशिश कर के भी नहीं मिलती। काल दो दिनों पर विभाजित है। एक दिन तुम्हारे पक्ष में है और एक दिन तुम्हारे विपक्ष में। जब काल तुम्हारे पक्ष में हो तो इतरओ मत और जब विपक्ष में हो तो धैर्य से काम लो।

397
सब से अच्छी सुगन्ध मुश्क है जिस का पात्र हलका और जिस की महक मस्तिष्क के लिए अच्छी है।

398
गर्व करना छोड़ दो, अहंकार को ख़त्म कर दो और क़ब्र को याद रखो।

399
आप (अ.स.) ने फ़रमायाः पुत्र का पिता पर एक हक़ है और पिता का पुत्र पर एक हक़ है। पिता का पुत्र पर यह हक़ है कि पुत्र पाक परवरदिगार की अवज्ञा के अतिरिक्त हर चीज़ में उस के आदेश का पालन करे। पुत्र का हक़ पिता पर यह है कि उस का अच्छा नाम रखे और उस को क़ुरान की शिक्षा दे।

400
बुरी नज़र, टोना टोटका, जादू और अच्छा शगुन होता है, मगर अपशगुन कोई चीज़ नहीं है और एक की बीमारी दूसरे को लग जाना ग़लत है। ख़ुशबू लगाना और शहद खाना बीमारी में लाभदायक है। सवारी करना और हरियाली पर नज़र करना दुख, शोक, क्षोभ एवं व्याकुलता को दूर करता है।

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