Friday 22 June 2012


हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (129 - 142)

129
अगर तुम्हारे दिल में संसार के निर्माता की बड़ाई का एहसास पैदा हो जाए तो यह संसार जो उस के द्वारा निर्मित है तुम्हारी नज़रों में छोटा हो जाएगा।

130
सिफ़्फ़ीन से पलटते हुए कूफ़े के बाहर एक क़ब्रिस्तान को देख कर फ़रमायाः ऐ डरावने घरों, उजड़े मकानों और अंधेरी क़ब्रों में रहने वालो, ऐ ख़ाक पर सोने वालो, ऐ परदेसियो, ऐ अकेले और परेशान रहने वालो, तुम तेज़ चले और हम से आगे बढ़ गए। हम तुम्हारे पीछे चल रहे हैं और तुम से मिलने वाले हैं। अब स्थिति यह है कि घरों में दूसरे बस गए हैं, बीवियों से दूसरों ने निकाह कर लिये हैं और तुम्हारा माल व दौलत बाँट लिया गया है। यह तो हमारी तरफ़ की ख़बर है। अब बताओ तुम्हारी तरफ़ की ख़बर क्या है ? (उस के बाद आपने अपने साथियों से फ़रमाया) अगर इन लोगों को बात करने की आज्ञा होती तो ये तुम को बताते कि परलोक के रास्ते के लिए सब से अच्छा सामान तक़वा अर्थात पवित्र चरित्र है।

131
एक व्यक्ति को दुनिया की बुराई करते हुए सुना तो आपने उस से फ़रमायाः ऐ दुनिया की बुराई करने वाले, उस के धोके में पड़ जाने वाले, उस की उलटी सीधी बातों में आ जाने वाले, तुम उस पर जान भी छिड़कते हो और उस की बुराई भी करते हो। क्या तुम दुनिया को अपराधी ठहराने का हक़ रखते हो या वो तुम को अपराधी ठहराने की हक़ रखती है। दुनिया ने कब तुम्हारे होशो हवास छीने और किस बात से तुम को धोका दिया? क्या उस ने तुम को मौत और बुढ़ापे से धोका दिया? क्या उस ने तुम को तुम्हारे बाप दादा के बेजान हो कर गिर जाने और तुम्हारी माओं के मिट्टी के नीचे सो जाने से तुम को धोका दिया? तुम ने कितनी बार रोगियों की देखभाल की और कितनी बार तुम ने ख़ुद रोगियों की सेवा की, उस सुबह को कि जब न दवा कारगर होती नज़र आती थी और न तुम्हारा रोना धोना उन के लिए कुछ लाभकारी होता था और तुम उन के लिए दवा दारू पूछते फिरते थे किन्तु उन में से किसी एक के लिए भी तुम्हारी कोशिश लाभकारी साबित न हुई और तुम्हारा मक़सद हासिल न हुवा। तुम अपनी कोशिशों से मौत को उस बीमार से हटा न सके तो दुनिया ने तो उस रोगी के बहाने ख़ुद तुम्हारा अंजाम और उस की मृत्यु के द्वारा ख़ुद तुम्हारी मौत का नक़शा तुम को दिखा दिया। इस में कोई शक नहीं कि दुनिया उस व्यक्ति के लिए कि जो विश्वास करे सच्चाई का घर है, जो उस की बातों को समझ ले उस के लिए चैन व सुकून का ठिकाना है, जो उस से परलोक के रास्ते का सामान इकट्ठा कर ले उस के लिए स्मृद्धि की जगह है और जो उस से उपदेश हासिल कर ले उस के लिए उपदेश लेने की जगह है। दुनिया अल्लाह के चाहने वालों के लिए मस्जिद और उस के फ़रिश्तों के लिए नमाज़ पढ़ने की जगह है। यह अल्लाह की ओर से संदेश (वहीए इलाही) उतरने की जगह है और उस के औलियाओं के लिए व्यापार करने की जगह है। उन्होंने यहाँ अल्लाह की रहमत प्राप्त की और यहां रहते हुए स्वर्ग को लाभ के तौर पर प्राप्त किया। तो अब कौन है जो दुनिया की बुराई करे जब कि उस ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वह दूर होने वाली चीज़ है और एलान कर दिया है कि बाक़ी रहने वाली नहीं है। उस ने बता दिया है कि वह ख़ुद भी ख़त्म हो जाए गी और उस में रहने वाला कोई भी प्राणी अपनी जान नहीं बचा पाए गा। उस ने अपनी हालत को उन की हालत के लिए नमूना बनाया है और अपनी ख़ुशियों से परलोक की ख़ुशियों का शौक़ दिलाया है। वह शौक़ दिलाने व डराने और भयभीत करने व सचेत करने के लिए शाम को कुशल मंगल का और सुबह को मुसीबत का संदेश ले कर आती है। तो जिन लोगों ने लज्जित हो कर सुबह की वह उस की बुराई करने लगे और दूसरे लोग क़यामत के दिन उस की प्रशंसा करें गे कि दुनिया ने उन्हें परलोक की याद दिलाई और उन्होंने परलोक को याद रखा। दुनिया ने उन को सूचना दी तो उन लोगों ने उस सूचना की पुष्टि की और जब उन को उपदेश दिया तो उन्होंने उस के उपदेश से लाभ उठाया।

132
अल्लाह का एक फ़रिश्ता हर रोज़ आवाज़ लगाता है कि मौत के लिए औलाद पैदा करो, बरबाद होने के लिए जमा करो और तबाह होने के लिए इमारतें खड़ी करो।

133
दुनिया एक ऐसा अस्थाई घर है जिस से स्थाई घर की ओर कूच करते हैं। और लोग दो तरह के होते हैः एक वो कि जिन्होंने स्वंय को बेच कर ख़ुद को बरबाद कर लिया और एक वो कि जिन्होंने स्वंय को ख़रीद कर अपने आप को स्वतंत्र कर लिया।

134
दोस्त उस समय तक दोस्त नहीं समझा जा सकता जब तक कि वो अपने भाई की तीन मौक़ों पर सुरक्षा न करेः मुसीबत के मौक़े पर, उस की पीठ के पीछे और उस के मरने के बाद।

135
जिस व्यक्ति को चार चीज़ें प्रदान की जाती हैं वह चार चीज़ों से वंचित नहीं रहताः जिस को दुआ करने का अवसर दिया जाता है वह उस के स्वीकृत होने से वंचित नहीं रहता, जिस को तौबा करने का अवसर दिया जाता है वह उस के स्वीकृत होने से वंचित नहीं रहता, जिस के नसीब में क्षमा माँगना लिखा होता है वह माफ़ किए जाने से वंचित नहीं रहता। और इस बात की पुष्टि अल्लाह तआलह की किताब से होती है। पाक परवरदिगार ने दुआ के बारे में फ़रमाया है, तुम मुझ से दुआ माँगो मैं स्वीकार करूँगा। और उस ने क्षमा माँगने के बारे में फ़रमाया है कि अगर कोई बुरा काम करे या अपने ऊपर अत्याचार करे और फिर अल्लाह से क्षमा माँगे तो अल्लाह को बड़ा माफ़ करने वाला और दया करने वाला पाएगा। और अल्लाह तआलाह ने शुक्र के बारे में फ़रमाया है, अगर तुम शुक्र करो गे तो मैं तुम पर नेमतों में इज़ाफ़ा कर दूँगा। और तौबा के बारे में फ़रमाया है, अल्लाह उन ही लोगों की तौबा क़बूल करता है जो नादानी की वजह से कोई हरकत कर बैठें और फिर जल्दी से तौबा कर लें तो ख़ुदा ऐसे लोगों की तौबा क़बूल करता है और ख़ुदा जानने वाला और हिकमत वाला है।

136
नमाज़ हर पवित्र व्यक्ति के लिए अल्लाह से निकटता का साधन है। हज हर कमज़ोर व्यक्ति का जिहाद है। हर चीज़ की ज़कात होती है और शरीर की ज़कात रोज़ा है। स्त्री का जिहाद अपने पति के साथ अच्छा व्यवहार है।

137
रोज़ी को दान द्वारा माँगो।

138
जिसे बदला मिलने का विश्वास होता है वह दूसरों को प्रदान करने में दरियादिली दिखाता है।

139
जितना ख़र्च होता है उतनी ही मदद मिलती है।

140
जो ख़र्च करने में बीच का रास्ता अपनाता है वह कभी मोहताज नहीं होता।

141
औलाद कम होना भी एक तरह की स्मृद्घि है।

142
दूसरों के साथ मेल जोल रखना बुद्धि का आधा हिस्सा है।

Wednesday 20 June 2012


हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (115- 128)

115
हज़रत अली (अ.स.) से सवाल किया गया कि आप का क्या हाल है तो आप ने फ़रमायाः उस का क्या हाल होगा जिस की ज़िन्दगी उस को मौत की तरफ़ ले जा रही हो और जिस का स्वास्थ्य बीमारी से पहले की हालत हो और जिस को उस के शरण स्थल से ही पकड़ लिया जाए गा।

116
कितने ही लोग ऐसे हैं जिन को उपहार दे कर पकड़ में ले लिया जाता है। कितने ही लोग ऐसे हैं जो अल्लाह की पर्दापोशी से धोका खाए हुए हैं और अपने बारे में अच्छी बातें सुन कर धोका खा जाते हैं और अल्लाह ने मोहलत से बढ़ कर परीक्षा का कोई ज़रिया क़रार नहीं दिया।

117
मेरे बारे में दो तरह के लोग तबाह व बरबाद होंगेः एक वो चाहने वाला जो हद से आगे बढ़ जाए और एक वो दुश्मन जो मुझ से अदावत रखता हो।

118
अवसर को हाथ से जाने देना दुख व क्षोभ का कारण होता है।

119
दुनिया की मिसाल साँप की सी है जो छूने में बहुत नर्म मालूम होता है मगर उस के अन्दर घातक विष भरा होता है। धोका खाया हुवा जाहिल इंसान उस की तरफ़ आकर्षित हो जाता है और बुद्धिमान व समझदार उस से बच कर रहता है।

120
हज़रत अली (अ.स.) से क़ुरैश के बारे में पूछा गया तो आपने फ़रमाया, बनी मख़ज़ूम का क़बीला क़ुरैश का महकता हुवा फूल हैं। उन के मर्दों से बात चीत और उन की औरतों से शादी पसंदीदा है। और बनी अब्दे शम्स बहुत दूर तक सोचने वाले और अपने पीछे की बातों की रोक थाम करने वाले हैं। लेकिन हम बनी हाशिम अपने हाथ की दौलत के लुटाने और मौत के मैदान में जान देने वाले होते हैं। वो लोग गिनती में अधिक, धोके बाज़ और कुरूप होते हैं और हम अच्छी बातें करने वाले, दूसरों के शुभचिन्तक और रौशन चेहरों वाले होते हैं।

121
उन दो प्रकार के कर्मों में कितना अन्तर है, एक वो कि जिस का स्वाद मिट जाए किन्तु कष्ट बाक़ी रहे और एक वो कि जिस का कष्ट ख़त्म हो जाए किन्तु पुण्य व पुरस्कार बाक़ी रहे।

122
हज़रत अली (अ.स.) एक जनाज़े के पीछे जा रहे थे कि आप ने एक व्यक्ति के हँसने की आवाज़ सुनी जिस पर आप ने फ़रमायाः
ऐसा लगता है जैसे दुनिया में मौत हमारे अलावा केवल दूसरों के लिए लिखी गई है और जैसे यह मौत केवल दूसरों को ही आए गी। और ऐसा लगता है कि हम जिन मरने वालों को देखते हैं वो यात्री हैं जो जल्दी ही हमारी तरफ़ पलट कर आ जाएँगे (जब कि वास्तविकता यह है कि) इधर हम उन को क़ब्रों में उतारते हैं और इधर उन का तर्का खाने लगते हैं जैसे हम हमेशा रहने वाले हैं। फिर यह कि हम ने हर उपदेश देने वाले को भुला दिया है और आफ़त का निशाना बन गए हैं।

123
वो व्यक्ति ख़ुशक़िसमत है जिस ने स्वयं को छोटा व ज़लील समझा, जिस की कमाई साफ़ सुथरी, जिस की नियत नेक और जिस की आदत अच्छी रही। जिसने अपने बचे हुए माल को अल्लाह की राह में ख़र्च किया, जिस ने अपनी ज़बान को ज़्यादा बात करने से रोके रखा, जिस ने अपने आप को लोगों को कष्ट देने से बचाए रखा, सुन्नत उस को बुरी न लगी और वो बिदअत (नई बात) के साथ जुड़ा नहीं।
सैय्यद रज़ी कहते हैं कि यह कलाम और इस से पहले वाला कलाम हज़रत मौहम्मद (स.) का है।

124
औरत का स्वाभिमान करना कुफ़्र और मर्द का स्वाभिमान करना ईमान है।

125
मैं इसलाम की ऐसी परिभाषा बयान करता हूँ कि जैसी परिभाषा मुझ से पहले किसी ने नहीं बयान की। इसलाम का अर्थ अपने आप को समर्पित कर देना है और समर्पित करने का अर्थ विश्वास है और विश्वास का अर्थ पुष्टि करना है और पुष्टि करने का अर्थ स्वीकार करना है और स्वीकार करने का अर्थ कर्तव्य का पालन करना है और कर्तव्य का पालन करना नेक काम अंजाम देना है।

126
मुझे आश्चर्य होता है कंजूस पर कि जिस निर्धनता से वह भागना चाहता है वही उस की तरफ़ तेज़ी से बढ़ती है और वो ख़ुशहाली जिस का वह इच्छुक होता है वही उस के हाथ से निकल जाती है। वह इस दुनिया में फ़क़ीरों जैसी ज़िन्दगी गुज़ारता है और उसे उस दुनिया में अमीरों जैसा हिसाब देना पड़ता है। और मुझे अहंकारी पर आश्चर्य होता है क्यूँकि कल वह नुतफ़ा (वीर्य) था और कल मुरदार हो जाएगा। और मुझे उस इंसान पर आश्चर्य होता है कि जो अल्लाह के होने में शक करता है जबकि वह उस के बनाए हुए संसार को देखता है। और मुझे उस व्यक्ति पर आश्चर्य होता है जो मृत्यु को भूले हुए है जबकि वह मरने वालों को देखता है। और मुझे उस पर आश्चर्य होता है कि जो पहली पैदाइश को देखता है मगर दोबारा उठाए जाने से इंकार करता है। और मुझे आश्चर्य होता है उस पर जो इस नश्वर सराय को आबाद करता है और अपने उस घर को भूल जाता है जहाँ उस को हमेशा रहना है।

127
जो कर्म में कोताही करता है वह दुख में घिरा रहता है और जिस के माल व जान में अल्लाह का कुछ हिस्सा न हो, अल्लाह को ऐसे व्यक्ति की कोई ज़रूरत नहीं है।

128
शुरू सर्दी में सर्दी से एहतियात करो और आख़िर में उस का स्वागत करो क्यूँकि सर्दी शरीरों के साथ वही करती है जो वृक्षों के साथ करती है। सर्दी शुरू में वृक्षों को झुलसा देती है और आख़िर में उन को हरा भरा कर देती है।


Tuesday 19 June 2012

हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (101 - 114)


101
दूसरों की मदद तीन बातों के बिना पायदार नहीं होतीः उसे छोटा समझा जाए ताकि वो बड़ी क़रार पाए, उस को छुपाया जाए ताकि वो लोगों को मालूम हो जाए और उस में जल्दी की जाए ताकि वो अच्छी लगे।

102
एक ज़माना ऐसा भी आए गा कि जब लोगों की बुराइयाँ चुनने वालों के अलावा किसी का महत्व न होगा, व्याभिचारी के अलावा कोई सभ्य नहीं समझा जाएगा, न्यायप्रिय व्यक्ति के अलावा किसी को कमज़ोर नहीं समझा जाएगा, अल्लाह की इबादत लोगों पर अपनी बड़ाई जताने के लिए होगी। ऐसे ज़माने में हुकूमत का कारोबार स्त्रियों से परामर्श, नवयुवकों की कोशिशों और ख़्वाजा सराओं की तिकड़मों के आधार पर चलेगा।

103
लोगों ने आप (अ.स.) के बदन पर पुराने और पेवन्द लगे कपड़े देखे। आप (अ.स.) से जब इस का कारण पूछा गया तो आप (अ.स.) ने फ़रमायाः इस से ह्रदय सुशील व मन नियंत्रित हो जाता है और मोमिन लोग उस का अनुसरण भी कर सकते हैं। याद रखो कि लोक व परलोक एक दूसरे के सख़्त दुश्मन हैं और एक दूसरे के विपरीत रास्ते हैं। जो दुनिया से मुहब्बत करेगा और उस से दिल लगाए गा वह परलोक को पसंद नहीं करेगा और उस से दुश्मनी रखेगा। लोक व परलोक पूरब और पश्चिम की तरह हैं और जो भी इन दोनों के बीच चलता है जब एक के निकट होता है तो दूसरे से दूर हो जाता है। इन दोनों के बीच वही रिश्ता है जो दो सौतनों के बीच होता है।

104
नौफ़ बिन फ़ज़ाला बकाली कहते हैं कि एक रात मैंने अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) को देखा कि वो अपने बिस्तर से उठे और सितारों पर नज़र की और फ़रमायाः ऐ नौफ़, सो रहे हो या जाग रहे हो?”। मैं ने कहा कि, या अमीरुल मोमिनीन जाग रहा हूँ फरमाया, वो लोग भाग्यशाली हैं जिन्होंने इस दुनिया से दिल न लगाया और हमेशा परलोक की ओर नज़र रखी। इन लोगों ने ज़मीन को अपना फ़र्श और मिट्टी को अपना बिस्तर बनाया और पानी को शरबत समझा। जिन्होंने क़ुरान को सीने से लगाए रखा, दुआ को अपनी ढाल बनाया और इस दुनिया से हज़रत मसीह (अ.स.) की तरह दामन झाड़ कर अलग हो गए।
ऐ नौफ़, दाऊद (अ.स.) रात के ऐसे ही समय में इबादत किया करते थे और फ़रमाते थे कि यह वह घड़ी है कि जिस में बन्दा जो भी दुआ माँगेगा वह क़ुबूल होगी सिवाए उस व्यक्ति के कि जो सरकारी टैक्स वसूल करने वाला हो, ख़ुफ़िया जानकारी इकटठा करने वाला हो, पुलिस में काम करता हो या ढोल ताशे बजाने वाला हो।

105
अल्लाह ने तुम्हारे लिए कुछ कर्तव्य निर्धारित किए हैं उनकी अनदेखी न करो। तुम्हारे लिए कुछ सीमाएँ तय कर दी हैं उन का उल्लंघन मत करो। तुम को जो काम करने से मना किया गया है वह मत करो और जो चीज़ें तुम्हें नहीं बताई गई हैं वह भूले से नहीं छोड़ दी हैं अतः उन को जानने की कोशिश न करो।

106
जब लोग दीन की कुछ चीज़ों को सांसारिक लाभ के लिए छोड़ देते हैं तो अल्लाह उन के लिए उस लाभ से कहीं अधिक नुक़सान की सूरत पैदा कर देता है।

107
बहुत से पढ़े लिखों की (दीन से) बेख़बरी उन को तबाह कर देती है और जो ज्ञान उन के पास होता है उस से उन को ज़रा भी लाभ नहीं होता।

108
इस इंसान के शरीर में सबसे अचरज की चीज़ गोश्त का वो टुकड़ा है जो एक रग के साथ लटका दिया गया है और वह दिल है। इस दिल में बुद्घि व ज्ञान के भण्डार भी हैं और उस की विपरीत विशेषताएँ (अर्थात बेवक़ूफ़ी और अज्ञान) भी पाई जाती हैं। अगर उसे आशा की किरन दिखाई देती है तो लालच उस को अपमानित कर देता है और जब उस में लालच पैदा होता है तो लालसा उस को बरबाद कर देती है। अगर उस पर निराशा छाती है तो पश्चाताप उस को मार डालता है और जब उस पर क्रोध का क़ब्ज़ा होता है तो उस को बहुत कष्ट होता है और चैन नहीं मिलता। और जब उस को प्रसन्नता प्राप्त होती है तो वह संयम को भूल जाता है और अगर अचानक उस पर डर हावी हो जाता है तो एहतियात उस को दूसरी चीज़ों से रोक देती है। और जब उस के हालात सुधरते हैं तो वह सब कुछ भूल जाता है। और जब उस को माल मिलता है तो दौलत उस को सरकश बना देती है। और जब उस पर मुसीबत पड़ती है तो उस की बेताबी व बेक़रारी उस को अपमानित कर देती है। और जब वह फ़क़ीरी में फँस जाता है तो मुसीबतों में गिरफ़्तार हो जाता है। और जब उस पर भूख छा जाती है तो कमज़ोरी उस को उठने नहीं देती। और जब उस को पेट भर कर खाना मिलता है तो वह इतना खाता है कि खाना उस के लिए मुसीबत बन जाता है। अतः हर ग़लती से नुक़सान होता है और सीमाओं का उल्लंघन हानिकारक होता है।

109
हम (अहलेबैत) संतुलन का वह बिन्दु हैं कि जो पीछे रह गए हैं उन को हम से आकर मिलना है और जो आगे बढ़ गए हैं उन्हें हमारी तरफ़ पलटना है।

110
अल्लाह के आदेशों को वही लागू कर सकता है कि जो हक़ के मामले में किसी से मुरव्वत न करता हो, ख़ुद को कमज़ोर न दिखाता हो और लालच के पीछे न दौड़ता हो।

111
सहल बिन हुनैफ़ अंसारी हज़रत अली (अ.स.) के प्रिय सहाबी थे। यह आप के साथ सिफ़्फ़ीन के युद्ध से कूफ़ा पलट कर आए और उन का देहांत हो गया जिस पर हज़रत अली (अ.स.) ने फ़रमायाः
यदि पहाड़ भी मुझ को दोस्त रखेगा तो कण कण हो कर बिखर जाएगा

112
जो हम अहलेबैत (अ.स.) से मुहब्बत करे उसे फ़क़ीरी का लिबास पहनने के लिए तैयार रहना चाहिए।

113
बुद्धि से ज़्यादा लाभदायक कोई दौलत नहीं है। अपने आप को पसंद करने से ज़्यादा डरावना कोई अकेलापन नहीं है। उपाय से बढ़ कर कोई बुद्धि नहीं है। संयम के समान कोई प्रतिष्ठा नहीं है। सदव्यवहार से अच्छा कोई साथी नहीं है। सदाचार से बढ़ कर कोई धरोहर नहीं है। सामर्थय जैसा कोई आगे चलने वाला नहीं है। अच्छे कर्मों से बढ़ कर कोई व्यापार नहीं है। पुण्य से बढ़ कर कोई लाभ नहीं है। मना किए गए कामों की ओर से अवरुचि से बढ़ कर कोई संयम नहीं है। चिन्तन से बढ़ कर कोई ज्ञान नहीं है। कर्तव्य को पूरा करने से बढ़ कर कोई इबादत नहीं है। मर्यादा व धैर्य से बढ़ कर कोई ईमान नहीं है। विनम्रता से बढ़ कर कोई जाति नहीं है। ज्ञान से बढ़ कर कोई आदर नहीं है। बुरदुबारी से बढ़ कर कोई इज़्ज़त नहीं है और परामर्श से मज़बूत कोई संरक्षक नहीं है।

114
जब समाज और लोगों में नेकी का चलन हो और कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति में कोई बुराई देखे बिना उस पर संदेह करे तो उस ने उस पर अन्याय व ज़्यादती की। और जब समाज और लोगों में बुराई फैली हुई हो और कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में अच्छा विचार रखे तो उस ने अपने आप ही को धोका दिया।

Friday 15 June 2012


हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (85 - 100)


85
जिस की ज़बान पर यह जुमला कभी नहीं आया कि नहीं जानता वो चोट खाने वाली जगहों पर चोट खाए बिना नहीं रह सकता।

86
वृद्घ व्यक्ति का परामर्श मुझ को जवान की हिम्मत से अधिक पसंद है। (एक रिवायत में आया है कि आप(अ.स.) ने फ़रमाया कि वृद्घ व्यक्ति का परामर्श मुझे जवान के ख़तरे में डटे रहने से ज़्यादा पसंद है।

87
उस व्यक्ति पर आश्चर्य होता है जो तौबा की गुंजाइश होते हुए भी निराश हो जाए।

88
हज़रत अबू जाफ़र मौहम्मद इबने अली अलबाक़र अलैहिस्सलाम ने रिवायत की है कि हज़रत अली (अ.स.) ने फ़रमायाः दुनिया में अल्लाह की ओर से आने  वाले प्रकोप से बचाने वाली सुरक्षा की दो चीज़ें थीं जिन में से एक तो उठा ली गई मगर दूसरी तुम्हारे पास अब भी मौजूद है अतः उस को मज़बूती से पकड़े रहो। जो चीज़ उठा ली गई वह हज़रत मौहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) थे और वो सुरक्षा जो बाक़ी है वो तौबा व असतग़फ़ार है। जैसे अल्लाह सुबहानहु ने फ़रमाया हैः अल्लाह उन लोगों पर अज़ाब नहीं करेगा जब तक कि तुम उन में मौजूद हो। और अल्लाह उन लोगों पर अज़ाब नहीं उतारे गा जब कि यह लोग तौबा व असतग़फ़ार कर रहे होंगे।
सैय्यद रज़ी कहते हैं कि यह बेहतरीन बात और उमदा नुकता है।

89
जिस ने अपने और अल्लाह के बीच मामलात को ठीक रखा तो अल्लाह उसके और लोगों के बीच के मामलात सुलझाए रखेगा। और जिस ने अपना परलोक संवार लिया तो अल्लाह उस की दुनिया भी संवार देगा। और जो ख़ुद को उपदेश देता रहे तो अल्लाह की तरफ़ से उस की सुरक्षा होती रहेगी।

90
सब से बड़ा विद्वान व ज्ञानी वह है कि जो लोगों को अल्लाह की रहमत से निराश न कर दे और उस की कृपा से मायूस न कर दे और उन को अल्लाह की ओर से दिये जाने वाले दण्ड से बिल्कुल निश्चिंत न कर दे।

91
जिस तरह बदन थक जाते हैं, उसी तरह दिल भी उकता जाते हैं। अतः दिलों के लिए ज्ञान की चुनी हुई बातें तलाश करो।

92
वह ज्ञान बिल्कुल बेकार है जो केवल ज़बान तक रह जाए और वह ज्ञान बहुत उत्तम है जो इंसान के अंग अंग से प्रकट हो।

93
ख़बरदार, तुम में से कोई यह न कहे कि, ऐ अल्लाह मैं तुझ से फ़ितने व परीक्षा के मुक़ाबले में पनाह चाहता हूँ। इस लिए कि कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो फ़ितने की लपेट में न हो। अतः जो कोई पनाह माँगे वह भ्रमित करने वाले फ़ितनों से पनाह माँगे। क्यूँकि अल्लाह सुबहानहू का कहना है कि इस बात को जाने रहो कि तुम्हारा माल और तुम्हारी औलाद फ़ितना है। इस का अर्थ यह है कि अल्लाह लोगों की माल और औलाद के द्वारा परीक्षा लेता है ताकि यह स्पष्ट हो जाए कि कौन अपनी रोज़ी से असंतुष्ट है और कौन अपने भाग्य के बारे में अल्लाह के लिए कृतज्ञ है। यद्यपि अल्लाह सुबहानहू उन लोगों के बारे में इतना जानता है कि वह ख़ुद भी अपने बारे में उतना नहीं जानते। किन्तु यह परीक्षा इस लिए है कि वो सारे कर्म सामने आ जाएँ जिन से पुण्य का हक़ पैदा होता है क्यूँकि कुछ लोग लड़का चाहते हैं और लड़कियाँ होने पर क्षुब्ध हो जाते हैं और कुछ अपना माल बढ़ाना चाहते हैं और उस की कमी को बुरा समझते हैं।
सैय्यद रज़ी फ़रमाते हैं कि यह आप का एक आश्चर्यजनक ख़ुतबा है।

94
हज़रत अली (अ.स.) से सवाल किया गया कि नेकी क्या है? आप ने फ़रमाया कि नेकी यह नहीं है कि तुम्हारा माल और तुम्हारी औलाद अधिक हो बल्कि अच्छी बात यह है कि तुम्हारा ज्ञान अधिक और बुरदुबारी बड़ी हो और तुम अपने परवरदिगार की इबादत पर नाज़ कर सको। अतः अगर कोई अच्छा काम करे तो अपने परवरदिगार का धन्यवाद करे और कोई बुरा काम करे तो तौबा व असतग़फार करे। और दुनिया में केवल दो लोगों के लिए भलाई है। एक वो जो गुनाह करे तो तौबा कर के उस की तलाफ़ी कर ले और एक वे जो भले काम करने में जल्दी करे।

95
जो कर्म तक़वे (पवित्रता) के साथ अंजाम दिया जाए उस को थोड़ा नहीं समझा जा सकता क्यूँकि स्वीकार किए जाने वाला कर्म किस प्रकार थोड़ा हो सकता है।

96
लोगों में नबियों के सब से अधिक निकट वो लोग होते हैं जो उन की शिक्षाओं का सब से अधिक ज्ञान रखते हों। यह कह कर आप (अ.स.) ने क़ुरान शरीफ़ की एक आयत पढ़ी, "इब्राहीम के अधिक निकट वो लोग हैं जो उन का अनुसरण करें और उन पर ईमान लाएँ और अब यह विशेषता इस नबी और इस पर ईमान लाने वालों की है।" फिर आप (अ.स.) ने फ़रमाया कि पैग़म्बर (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) का दोस्त वही है जो उन (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) के आदेश का पालन करे चाहे रिश्ते की दृष्टि से वो उन से दूर ही क्यूँ न हो। और आप (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) का शत्रु वो है जो आप के आदेश का उल्लंधन करे चाहे रिश्ते के लिहाज़ से वो आप (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) के कितना ही निकट क्यूँ न हो। 


97
एक ख़ारजी के बारे में आप (अ.स.) ने सुना कि वह नमाज़े शब पढ़ता है और क़ुरान की तिलावत करता है तो आप ने फ़रमाया कि विश्वास की हालत में सोना शक की हालत में नमाज़ पढ़ने से अच्छा है।

98
जब कोई हदीस सुनो तो उस को अक़्ल की कसौटी पर परखो, केवल शब्द नक़्ल करने पर बस न करो क्यूँकि ज्ञान को नक़ल करने वाले तो बहुत हैं किन्तु उस पर सोच विचार करने वाले बहुत कम।

99
आप (अ.स.) ने एक व्यक्ति को इन्नालिल्लाहे व इन्नाइलैहे राजेऊन (हम अल्लाह के हैं और हमें अल्लाह की तरफ़ पलटना है) कहते हुए सुना। तो आप ने फ़रमायाः हमारा यह कहना कि हम अल्लाह के हैं, उस की सम्पत्ति होने का इक़रार है और यह कहना कि हमें उसी की तरफ़ पलटना है अपनी फ़ना (विनाश) का इक़रार है।

100
कुछ लोगों ने हज़रत अली (अ.स.) की उन के सामने प्रशंसा की तो आपने फ़रमाया, ऐ अल्लाह तू मुझे मुझ से बेहतर जानता है और मैं ख़ुद को इन लोगों से बेहतर पहचानता हूँ। ऐ अल्लाह मुझे उस से बेहतर क़रार दे जो इन लोगों का ख़्याल है और मेरी उन बातों को बख़्श दे जिन का इन को ज्ञान नहीं है।



Tuesday 12 June 2012


हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (71 – 84)


71
जब अक़्ल बढ़ती है तो बातें कम हो जाती हैं।

72
ज़माना जिस्मों को पुराना व कमज़ोर और आकाक्षाओं को तरो ताज़ा कर देता है। मौत को क़रीब लाता है और आशाओं को दूर करता है। जो ज़माने से कुछ पा लेता है वह भी दुख सहता है और जो कुछ खो देता है वह तो दुख झेलता ही है।

73
जो ख़ुद को लोगों का पेशवा बनाता है उसे दूसरों को शिक्षा देने से पहले अपने आप को शिक्षा देनी चाहिए और इस से पहले कि वह ज़बान से दूसरों को सदव्यवहार की शिक्षा दे उस को अपना आचरण सुधारना चाहिए।

74
इंसान की हर सांस एक क़दम है जो उस को मौत की तरफ़ बढ़ाए लिए चला जा रहा है।

75
जो चीज़ गिनती में आ जाती है समाप्त हो जाती है और जिसे आना होता है वह आ कर रहता है।

76
जब किसी काम में अच्छे बुरे की पहचान न रहे तो उस के आरम्भ को देख कर परिणाम को पहचान लेना चाहिए।

77
जब ज़रार बिन ज़मराए ज़बाई मुआविया के पास गए और मुआविया ने अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबीतालिब (अ.स.) के बारे में उन से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि मैं इस बात की गवाही देता हूँ कि मैंने कई बार उन (अ.स.) को देखा कि जब रात अपने अंधकार का दामन फैला चुकी थी तो वह अपने इबादत के हुजरे में अपनी दाढ़ी को पकड़े उस इंसान की तरह तड़प रहे थे जिस को साँप ने डस लिया हो और दुखी हो कर रो रहे थे किः

ऐ दुनिया, तू मुझ से दूर हो जा, क्या तू मेरे सामने बन सँवर कर आई है या मेरी चाहने वाली और मुझ पर जान देने वाली बन कर आई है। तेरा वह वक़्त न आए कि तू मुझ को धोका दे सके। भला यह क्यूँ कर हो सकता है। जा किसी और को धोका दे। मुझे तेरी चाहत नहीं है। मैं तो तुझ को तीन बार तलाक़ दे चुका हूँ कि जिस के बाद दोबारा मिलन नहीं हो सकता। तेरी ज़िन्दगी बहुत छोटी है। तेरी अहमियत बहुत कम है और तेरी आरज़ू रखना बहुत घटिया बात है। अफ़सोस रास्ते का सामान बहुत थोड़ा और रास्ता बहुत लम्बा है और मंजिल बहुत कठिन है।

78
एक व्यक्ति ने हज़रत अली (अ.स.) से सवाल किया कि क्या हमारा शाम देश वालों से लड़ने जाना अल्लाह की मर्ज़ी के अनुसार था। आप (अ.स.) ने उस के जवाब में एक विस्तृत खुतबा दिया जिस के मुख्य अंश इस प्रकार हैं। 

खुदा तुम पर रहम करे, शायद तुम ने अल्लाह की मर्ज़ी को अच्छी तरह से समझ लिया है जिस को अंजाम देने के लिए हम मजबूर हैं। यदि ऐसा होता तो फिर न सवाब का कोई सवाल पैदा होता न दण्ड का। न वादे का कोई मतलब होता न धमकी का। पाक परवरदिगार ने अपने बन्दों को स्वतन्त्र बना कर नियुक्त किया है और दण्ड से डराते हुए बरे काम से रोका है। उन को सरल व आसान तकलीफ़ दी है और कठिनाइयों से बचाए रखा है। वह थोड़े किए पर अधिक पुण्य देता है। उस की नाफ़रमानी इस वजह से नहीं होती कि वह दब गया है और न उस की आज्ञा का पालन इस लिए किया जाता है कि उस ने मजबूर कर रखा है। उस ने अपने पैग़म्बरों (दूतों) को खेल तमाशे के लिए नहीं भेजा और अपने बन्दों पर अपनी किताबें बिला वजह नहीं उतारीं। और आसमान और ज़मीन और जो कुछ उन के बीच है को बिला वजह पैदा नहीं किया है। यह तो उन लोगों की सोच है कि जिन्होंने कुफ़्र इख़्तियार किया। तो अफ़सोस है उन पर जिन्होंने कुफ़्र इख़्तियार किया नरक की आग के दण्ड की वजह से।

79
ज्ञान की बात जहाँ कहीं भी हो उस को हासिल कर लो क्यूँकि ज्ञान की बात मुनाफ़िक़ के सीने में तड़पती रहती है जब तक कि उस के सीने से निकल कर मोमिन के सीने में पहुँच कर ज्ञान की दूसरी बातों के साथ मिल नहीं जाती।

80
ज्ञान की बात मोमिन की खोई हुई चीज़ है। ज्ञान की बात हासिल करो चाहे मुनाफ़िक़ से ही क्यूँ न हासिल करनी पड़े।

81
हर व्यक्ति की क़ीमत वह हुनर है जो उस के अन्दर है।
सैय्यद रज़ी फ़रमाते हैं कि यह एक ऐसा अनमोल वाक्य है जिस की कोई क़ीमत नहीं है।

82
तुम्हें ऐसी पांच बातों की हिदायत दी जाती है कि अगर उन को हासिल करने के लिए यात्रा की कठिनाइयाँ उठाई जाएँ तो भी ठीक है। तुम मे से कोई व्यक्ति अल्लाह के सिवा किसी से आस न लगाए, पाप के अलावा किसी और चीज़ से न डरे, अगर किसी से कोई बात मालूम की जाए और वह उस को न जानता हो तो यह कहने में न शरमाए कि नहीं जानता, और अगर कोई व्यक्ति कोई बात न जानता हो तो उस को सीखने में न शर्माए। और धैर्य (सब्र) रखे क्यूँकि धैर्य ईमान के लिए वैसा ही है जैसे बदन के लिए सर और अगर सर न हो तो बदन बेकार है। इसी प्रकार यदि ईमान के साथ धैर्य न हो तो ईमान में कोई ख़ूबी नहीं है। जिस के पास धैर्य नहीं है उस के पास ईमान नहीं है।

83
एक व्यक्ति ने आप (अ.स.) की बहुत प्रशंसा की जब कि वह दिल से आप (अ.स.) के प्रति श्रद्धा नहीं रखता था। आप (अ.स.) ने उस की प्रशंसा के जवाब में फ़रमायाः जो तुम्हारी ज़बान पर है मैं उस से कम हूँ, किन्तु जो तुम्हारे दिल के अन्दर है मैं उस से अधिक हूँ।

84
तलवार से बचे हुए लोग ज़्यादा बाक़ी रहते हैं और उन की नस्ल ज़्यादा होती है।





Monday 11 June 2012


हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (45 - 70)



45

अगर मैं मोमिन की नाक पर तलवारें मारूँ कि वह मुझ को दुश्मन रखे तो नहीं रखेगा और अगर मुनाफ़िक़ को पूरी दुनिया भी बख़्श दूँ कि वह मुझे दोस्त रखे तो नहीं रखेगा। इस लिए कि यह वह फ़ैसला है जो पैग़म्बरे उम्मी लक़ब, हज़रत मौहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम), की ज़बान से हो चुका है। आप (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) ने फ़रमाया था, ऐ अली, कोई मोमिन तुम से दुश्मनी नहीं रखेगा और कोई मुनाफ़िक़ तुम को दोस्त नहीं रखेगा


46
वो पाप जिस का तुम्हें दुख हो उस नेकी से कहीं अच्छा है जो तुम को घमण्डी बना दे।

47
किसी व्यक्ति में जितनी हिम्मत होगी उतनी ही उस की अहमियत हो गी। जितनी उस में मुरव्वत और मर्दानगी होगी उतनी ही उस में सच बोलने की ताक़त होगी। जितना वह बदनामी से डरेगा उतनी ही उस में बहादुरी हो गी और उस का दामन जितना पाक होगा उतनी ही उस में ग़ैरत हो गी।

48
सफ़लता दूरदर्शिता पर निर्भर है, दूरदर्शिता सोच विचार पर निर्भर है और सोच विचार भेदों को छुपा कर रखने पर निर्भर है।

49
भूखे शरीफ़ और पेट भरे कमीने के हमले से डरते रहो।

50
लोगों के दिल जानवरों की तरह हैं जो उन को सधाए गा वो उस की तरफ़ झुक जाएँ गे।

51
जब तक तुम्हारे नसीब तुम्हारे साथ हैं तुम्हारे ऐब छुपे हुए हैं।

52
माफ़ करना सब से ज़्यादा उस को शोभा देता है जो दण्ड देने की शक्ति रखता हो।

53
सख़ावत वो है जो बिना माँगे दिया जाए क्यूँकि जब कोई चीज़ माँगने पर दी जाती है तो वो या तो शर्म से बचने के लिए दी जाती है या बदनामी से।

54
बुद्घि से बढ़ कर कोई दौलत नहीं है। जिहालत से बढ़कर कोई ग़रीबी नहीं है। सदव्यवहार से बढ़ कर कोई धरोहर नहीं है और परामर्श से बढ़ कर कोई मददगार नहीं है।

55
सब्र (धैर्य) दो तरह का होता हैः नापसंद बातों पर सब्र और पसंदीदा चीज़ों से सब्र।

56
अगर पैसा हो तो परदेस भी देस है और अगर पैसा न हो तो देस भी परदेस है।

57
संतोष वो धन है जो कभी समाप्त नहीं होता।

58
माल वासनाओं का स्रोत है।

59
जो तुम को बुरा काम करने से रोकने के लिए डराए वो तुम को शुभ समाचार सुनाने वाला है।

60
ज़बान एक ऐसा जानवर है कि अगर उस को खुला छोड़ दिया जाए तो फाड़ खाए।

61
औरत (स्त्री) एक ऐसा बिच्छू है कि जिस के लिपटने में भी मज़ा है।

62
जब तुम को सलाम किया जाए तो उससे बेहतर तरीक़े से उत्तर दो। और जब कोई तुम पर एहसान (उपकार) करे तो उस को उस से बढ़ चढ़ कर जवाब दो किन्तु उस सूरत में भी श्रेय पहल करने वाले को ही जाए गा।

63
सिफ़ारिश करने वाला उम्मीदवार के लिए परों की तरह होता है।

64
दुनिया वाले ऐसे सवारों की तरह हैं जो सो रहे हैं और सफ़र जारी है।

65
दोस्तों को खो देना एक तरह की ग़रीबी है।

66
मतलब का हाथ से निकल जाना इस बात से आसान है कि किसी नालायक़ के सामने हाथ फैलाया जाए।

67
थोड़ा देने से शर्माओ नहीं क्यूँकि खाली हाथ वापिस कर देना उस से भी गिरी हुई बात है।

68
पाकदामिनी ग़रीबी का ज़ेवर है और शुक्र दौलतमंदी की शोभा है।

69
अगर तुम्हारी मर्ज़ी के मुताबिक़ काम न बन सके तो फिर जिस हाल में हो उसमें मगन रहो।

70
जाहिल को न देखो गे मगर यह कि या तो वह हद से बढ़ा हुआ है या उस से बहुत पीछे।


हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) के कथन (33 - 44)



33
सख़ावत करो मगर फ़िज़ूलख़र्ची मत करो, किफ़ायत (मितव्ययता) करो मगर कंजूसी मत करो।

34
सबसे बड़ी दौलत ख़्वाहिशों (आकांक्षओं) का त्याग कर देना है।

35
जो व्यक्ति दूसरों के बारे में बिना सोचे समझे ऐसी बातें कह देता है जो उन को नापसन्द हों तो वह उस के बारे में ऐसी ऐसी बातें कह देते हैं जिन को वह जानते तक नहीं।

36
जिस ने अपनी ख़्वाहिशों को बढ़ा लिया उस ने अपने कर्म बरबाद कर लिए।

37
हज़रत अली (अ.स.) शाम देश (सीरिया) जाते हुए इराक़ के एक शहर अमबार से गुज़रे। वहाँ के किसान उन के आदर में घोड़ों से उतर गए और उन के घोड़े के आगे दौड़ने लगे। आप (अ.स.) ने उन से पूछा कि तुम ने यह काम क्यूँ किया? उन्होंने कहा कि यह हमारा आम रिवाज है और हम अपने हाकिमों के आदर में ऐसा ही करते हैं। आप (अ.स.) ने फ़रमाया कि ख़ुदा की क़सम तुम्हारे हाकिमों को तुम्हारे इस काम से कोई लाभ नहीं होता किन्तु तुम इस काम से अपने आप को इस दुनिया में तकलीफ़ में डालते हो और इस की वजह से परलोक में भी दुर्भाग्य मोल लेते हो। वह तकलीफ़ कितना घाटे का सौदा है जिस के नतीजे में परलोक में भी दण्ड मिले और वह आराम कितना लाभदायक है जिस का नतीजा नरक से सुरक्षा हो।

38
हज़रत अली (अ.स.) ने अपने पुत्र, हज़रत इमाम हसन (अ.स.) से फ़रमाया कि मुझ से चार और फिर चार बातें याद कर लो जिस के बाद तुम्हें किसी कार्य से हानि नहीं पहुँचे गी। सबसे बड़ी दौलत अक़्ल है और सबसे बड़ी ग़रीबी बेवक़ूफ़ी है। सबसे डरावना अकेलापन केवल अपने आप को पसन्द करना है और व्यक्ति की सबसे आदरणीय जाति उस का सदव्यवहार है।

ऐ पुत्र, ख़बरदार, कभी किसी बेवक़ूफ़ से दोस्ती न करना क्यूँकि वह तुम को लाभ पहुँचाना चाहे गा किन्तु हानि पहुँचा देगा। कभी किसी कंजूस से दोस्ती मत करना क्यूँकि वह ऐसे समय में तुम से दूर भाग जाएगा कि जब तुम को उस की सब से अधिक आवश्यकता हो गी। और देखो कभी किसी व्याभाचारी से दोस्ती न करना, वह तुम को बहुत सस्ते दामों में बेच देगा। और देखो कभी किसी झूटे से दोस्ती न करना क्यूँकि कि वह सराब (मृगमरीचिका) की तरह है जो तुम को दूर की चीज़ें पास और पास की चीज़ दूर दिखाएगा।

39
अगर मुसतहिब्बात,(अर्थात वो कार्य जिस के न करने पर दण्ड न मिले किन्तु जिस के करने से सवाब मिले) वाजिबात (जिस के न करने से दण्ड मिले तथा जिस के करने से सवाब मिले) के रास्ते में रुकावट पैदा करें तो कोई व्यक्ति उन के ज़रिए अल्लाह के नज़दीक नहीं हो सकता।

40
बुद्घिमान की ज़बान उसके दिल के पीछे होती है और बेवक़ूफ़ का दिल उसकी ज़बान के पीछे होता है।

सैय्यद रज़ी कहते हैं कि इस वाक्य में बहुत अजीब और पवित्र अर्थ छिपा हुआ है। अर्थात बुद्घिमान व्यक्ति बहुत सोच विचार करने के बाद ज़बान खोलता है और बेवक़ूफ़ इंसान जो कुछ उस के दिल में आता है बिना सोचे समझे कह देता है इस तरह अक़्लमंद की ज़ुबान उस के आधीन  होती है और बेवक़ूफ़ का दिल उसकी ज़बान के आधीन होता है।

41
(यही बात दूसरे शब्दों में इस तरह कही गई है) बेवक़ूफ़ का दिल उस के मुँह के अन्दर रहता है और बुद्धिमान की ज़बान उस के दिल के अन्दर रहती है।

42
हज़रत अली (अ.स.) के एक सहाबी ने उन से अपनी बीमारी का शिकवा किया। जिस पर आप (अ.स.) ने फ़रमायाः अल्लाह ने तुम्हारी बीमारी को तुम्हारे पापों को धोने का साधन बनाया है, क्यूँकि खुद बीमारी के बदले में कोई पुण्य नहीं मिलता लेकिन यह पापों को मिटा देती है और उन को इस तरह झाड़ देती है जैसे वृक्ष से पत्ते झड़ते हैं। क्यूँकि पुण्य तब मिलता है जब ज़बान से कुछ कहा जाए या हाथ पैर से कोई काम किया जाय। और परवरदिगार अपने बन्दों में से जिस को चाहता है उस को नेक नियति और मन की पवित्रता के कारण स्वर्ग में दाख़िल कर देता है।

सैय्यद रज़ी कहते हैं कि इमाम (अ.स.) ने सही फ़रमाया कि बीमारी का कोई सवाब नहीं है। जब बन्दे पर कोई मुसीबत, बला या परेशानी आती है तो अल्लाह उस को उस मुसीबत का बदला देता है। बीमारी भी उन्हीं चीज़ों में से एक है जिन का बदला दिया जाता है और सवाब वो है जो अल्लाह की तरफ़ से बन्दों को उन के नेक काम के बदले में दिया जाता है। इमाम (अ.स.) ने यहाँ बदले और सवाब में अन्तर को बयान किया है।

43
एक बार हज़रत अली (अ.स.) ने ख़बाब बिन अरत को याद करते हुए उन के बारे में फ़रमाया, अल्लाह ख़बाब बिन अरत पर अपनी रहमत फ़रमाए, वह अपनी मर्ज़ी से इसलाम लाए, उन्हों ने अपनी खुशी से हिजरत की और ज़रूरत के मुताबिक़ क़नाअत की। वह ख़ुदा से राज़ी रहे और उन्होंने एक मुजाहिद की तरह ज़िन्दगी गुज़ारी।

44
वह व्यक्ति भाग्यशाली है जिसने परलोक को याद रखा, हिसाब किताब देने के लिए कर्म किए, जितनी ज़रूरत हो उतनी क़नाअत की और अल्लाह से राज़ी रहा।